पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५२४

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४३६ बौड-धर्म-दर्शन है। किन्तु यदि श्रात्मा और धर्म नहीं हैं, तो कौन द्रव्य-सत् सादृश्य का श्राश्रय होगा ? जब उसका अभाव है, तो उसके नाम का उपचार कैसे हो सकता है। यह कैसे कह सकते हैं कि चित्त बाह्याथे के रूप में अवभासित होता है ? उपचारका समाधान यह श्राक्षेप दुर्बल हैं, क्योंकि हमने यह सिद्ध किया है कि चित्त से व्यतिरिक्त अात्म- धर्म नहीं है । श्राहए, हम उपचार की परीक्षा करें। 'अग्नि माणवक है। इसमें नाति या द्रव्य का उपचार होना बताते हैं । माणवक का जाति-अग्नि से सादृश्य दिखाना 'जात्युपचार है । माणवक का एक द्रव्य से सादृश्य दिखाना 'द्रव्योपचार है। दोनों प्रकार से उपचार का अभाव है। आयुपचार-कपिलत्व और तीक्ष्णत्व अग्नि के साधारण-जाति गुण नहीं हैं । साधा- रण धर्मों के अभाव में माणवक में जात्युपचार युक्त नहीं है, क्यं कि अतिप्रसंग का दोष होता है। तब तो श्राप यह भी कह सकंग कि उपचार से जल अग्नि है। किन्तु आप कहेंगे कि यद्यपि नाति का तद्धमत्व नहीं है, तथापि तीक्ष्णत्व और कपिलत्व का अग्नित्य से अविनाभाव है; और इसलिए माणवक में जात्युपचार होगा। इसके उत्तर में हमारा यह कथन है कि बाति के अभाव में भी तीदयत्व और कपिलत्व माणवक में देखा माता है, और इसलिए अविनामाविस्व श्रयुक्त है; और अविनामावित्व में उपचार का अभाव है, क्योंकि अग्नि के सदृश माणवक में भी जाति का सद्भाव है। अतः माणवक नास्यु. पचार संभव नहीं है। म्योपचार-द्रव्योपचार भी संभव नहीं है, क्योंकि सामान्य धर्म का अभाव है । अग्नि का जो तीक्ष्ण या कपिल गुण है, वही गुण माणवक में नहीं है। विशेष स्वाश्रय में प्रतिवद्ध होता है । अत: अग्नि-गुण के विना अग्नि का माणवक में अचार युक्त नहीं है । यदि यह कहो कि अग्नि-गुण के साहश्य से युक्त है, तो इस अवस्था में भी अग्नि-गुण का ही माणवक- गुण में उपचार साहश्य के कारण युक्त है, किन्तु माणवक में अग्नि का नहीं। इसलिए द्रव्योपचार भी युक्त नहीं है। यह यथार्थ नहीं है कि तीन भूतबस्तु पर उपचार प्राश्रित है । भृतवस्तु ( स्वलक्षण) सक्ति ज्ञान और अमिधान का विषय नहीं है । यह ज्ञान और अभिधान सामान्य लक्षण को श्रालंबन बनाते हैं। मुख्य प्रारमा, धर्म का प्रभाव - ज्ञान और अभिधान की प्रधान में प्रवृत्ति गुणरूप में ही होती है, क्योंकि वह प्रधान अर्थात् मुख्य पदार्थ के स्वरूप का संस्पर्श नहीं करते । अन्यथा गुण की व्यर्यता का प्रसंग होगा। किन्तु बान और श्रभिधान के व्यतिरिक्त पदार्थ-स्वरूप को परिच्छिन्न करने का अन्य उपाय नहीं है। अत: यह मानना होगा कि मुख्य पदार्थ नहीं है। इसी प्रकार संबन्ध के श्रभाव से शब्द में ज्ञान और अभिधान का अभाव है। इसी प्रकार अभि. धान और अभिधेय के अभाव से मुख्य पदार्थ नहीं है । अत: सत्र गौण ही है, मुख्य नहीं है ।