पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५९५

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ऊनविंश अध्याय सिद्धि के लिए यदि उभयत्र 'गति' का योग स्वीकार करें, तो पुनः गमन-द्वय और गन्तु-द्वय की प्रसक्ति होगी। इस प्रकार 'गन्ता गच्छति' यह व्यपदेश नहीं बनेगा। 'अगन्ता गच्छति' भी नहीं बनेगा, क्योंकि अगन्ता गमि-क्रिया से रहित है, और 'गच्छति' की प्रवृत्ति गमि-निया के योग से है। गन्ता, अगन्ता से विनिर्मुक्त कोई तृतीय नहीं है, जो गमन-क्रिया से युक्त हो । इमलिए गमन असिद्ध है। गमनारंभ का निरास नागार्जुन गमनारंभ का भी निराम करते हैं। वह प्रतिपक्षी से पूछते हैं कि आप गमनारंभ गत, अगत या गम्बमान किस श्रध्व में मानते हैं ? गत अध्व में गमन का प्रारंभ मानना ठीक नहीं है। 'गत' गमन-क्रिया की उपरति है। उसमें गमनारंभ ( जो वर्तमान है ) मानने से अतीत वर्तमान का विरोध होगा। अगत में गमनारंभ मानने से अनागत वर्तमान का विरोध होगा। गम्यमान अव में गमनारंभ मानने से पूर्ववत् क्रिया-द्वय तथा कर्तृ-द्वय की आपत्ति होगी। जन तक स्थिति है, तब तक गमन का प्रारंभ नहीं हुश्रा । गमन श्रारंभ करने के पूर्व गत या गम्यमान अध्ध नहीं हैं, जिस पर गमन हो । गमनारंभ के पूर्व श्रगत अध्व अवश्य है, किन्तु उस पर गमन नहीं होगा, क्योंकि जिस पर गमि-क्रिया का प्रारंभ नहीं हुआ, वह अगत है। अन्यत्रय का निषेध नागार्जुन गमनारंभ का खंडन करके उसी से गत-अगत-गम्यमान अध्व-त्रय की सत्ता का भी खंडन करते हैं । जब गमि-क्रिया का प्रारंभ उपलब्ध नहीं है, तो उसकी उपरति को 'गत वर्तमानता को 'गम्यमान' और अनुत्पत्ति को 'अगत' कैसे कहेंगे ? इस प्रकार अध्व-त्रय के मिथ्यात्व से गमन व्यपदेश की कारणता असिद्ध होती है। बालोकाधिकार के समान प्रतिपक्ष- भूत स्थिति की सिद्धि से भी गमन की सिद्धि नहीं होगी; क्योंकि स्थिति की सिद्धि गमनापेक्ष है । गन्ता की स्थिति नहीं । स्थिति मानने पर उसका गन्तृल व्यपदेशन होगा। गमन की सत्ता गमन की निवृत्ति से भी निश्चित नहीं होगी, क्योंकि गमन की निवृत्ति नहीं है । गन्ता गत अञ्च से निवृत्त नहीं होगा, क्योंकि गति ही नहीं है। इसीलिए अगत से भी नहीं होगा। गम्यमान अध से निवृत्त इसलिए नहीं होगा कि वह अनुपलब्ध है। उसमें गमन-क्रिया का अभाव है। स्थिति और गति अन्योन्य-प्रतिद्वन्द्वी हैं । जब स्थिति है, तो गति का सद्भाव सिद्ध होगा। किन्तु माध्यमिक गति के समान स्थिति का भी प्रतिषेध करते हैं:-गति के ही समान स्थिति का प्रारंभ या स्थिति की निवृत्ति स्थित, अस्थित और स्थीयमान में संभव नहीं है । श्राचार्य गमन के प्रतिबंध के लिए एक विचित्र तर्क उपस्थित करते हैं। वे कहते हैं कि गन्ता से गमन भिन्न है या अभिन्न ? प्रथम पद ठीक नहीं है, क्योंकि यदि गन्ता से गमन- क्रिया अभिन्न है, तो कर्ता, और क्रिया का एकत्व मानना पड़ेगा, क्रिया और कर्ता का भेदेन