पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६०९

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ऊनविंश अध्याय ५२१ पूछता हूं कि ऐसी अवस्था में ज्वाला-परिगति किसी की नहीं बन सकती। फिर वादी पर पूर्वोक समस्त दोष निवारित ही रहते हैं ।। पूर्वपक्षी अग्नि और हन्धन का भेद स्वीकार करते हुए, भी दोनों की प्राप्ति सिद्ध करता है । उसका कहना है कि स्त्री-पुरुष परस्पर अन्य है, और उनकी प्राप्ति होती है । सिद्धान्ती इसका उत्तर देता है कि प्रकृत में स्त्री-पुरुष का दृष्टान्त तत्र लागू हो, जब स्त्री-पुरुष के समान अमि- इन्धन की परस्परानपेक्ष सिद्धि प्राप बता सकें, किन्तु यह असंभव है। यदि आप अन्योन्यापेक्ष जन्मवाली वस्तुओं में अन्यत्व सिद्ध करें, और फिर उनकी प्राप्ति सिद्ध करें, तब आपका दृष्टान्त न्याय्य होगा। पूर्वपक्षी कहता है कि यद्यपि अग्नि-इन्धन की परस्पर निरपेक्ष सिद्धि नहीं है, तथापि परस्पर अपेक्षावश उनकी स्वरूप-सिद्धि तो है ! क्योंकि अविद्यमान बन्ध्यापुत्र और वन्ध्यादुहिता की परस्पर अपेक्षा नहीं होती । सिद्धान्ती पूछता है कि अाप अमि को दहन का कर्ता और इन्धन को दहन का कर्म मानकर उनका कर्म-कत भाव स्वीकार करते हैं । मैं इन्धन और अनि में कौन पूर्व निष्पन्न है ? यदि इन्धन पूर्व निष्पन्न हो तो अमि-निरपेक्ष होने के कारण उसमें इध्यमानता न होगी। फलतः उसमें इन्धनत्व न होगा। अन्यथा समस्त तृणादि इन्धन होंगे । यदि अग्नि को पूर्व माने और इन्धन को पश्चात् तो यह असंभव होगा कि इन्धन से पूर्व ही अमि सिद्ध हो जाय। और अग्नि निहे तुक भी होगा। इसलिए पूर्व सिद्ध की अपेक्षा से इतर की सिद्धि होती है, अापका यह पक्ष असंभव हैं । यदि हम इन्धन को पूर्व और अमि को पश्चात् मान भी लें और कहें कि इन्धन की अपेक्षा करके अग्नि होता है, तो सिद्ध-साधनता दोष श्रापतित होगा, क्योंकि सिद्ध रूप (विद्यमान पदार्थ) की अन्य की अपेक्षावश पुनः सिद्धि माननी पड़ेगी। स्पष्ट है कि सिद्ध अग्नि को इन्धन से यदि कुछ लेना होता, तभी उसकी इन्धनापेक्षता सफल होती। इसलिए इन्धन की अपेक्षा कर अमि संपन्न होता है, यह बात ठीक नहीं है। पूर्वपक्षी इन्धन और अग्नि का योगपद्य मानता है । यह योगपद्यवश इन्धन की सिद्धि से अग्नि की सिद्धि और अग्नि की सिद्धि से इन्धन की सिद्धि मानकर कहता है कि ऐसी अवस्था में श्रापकी यह शङ्का व्यर्थ है कि कौन पूर्व निष्पन्न है ? सिद्धान्ती उत्तर देता है कि ऐसी अवस्था में अग्नि और इन्धन दोनों की ही सिद्धि नहीं होगी, क्योंकि यदि अग्नि पदार्थ इन्धन पदार्थ की अपेक्षा से सिद्ध होता है, और इन्धन पदार्थ को अात्मसिद्धि के लिए अग्नि की अपेक्षा है, तो आप ही बताइए कि कौन किसकी अपेक्षा करके सिद्ध हो? इस प्रकार अग्नि और इन्धन की परस्परापेक्षा मानने पर उनकी सिदि नहीं होती; क्योंकि सिद्ध और प्रसिद्ध में अपेक्षा नहीं होती। पूर्वपक्षी कहता है कि हमें आपके तकों की इस सूक्ष्मेक्षिका से क्या प्रयोजन १ हम लोग स्पष्ट ही अमि से जलता हुअा इन्धन देखते हैं। यह प्रतीति अगि इन्धन की सिद्धि के लिए पर्याप्त है। ६६