पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६१२

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बौद्ध-धर्म-दर्शन वादी यदि यह कहे कि दुःख के स्वयंकृतत्व से मेरा अभिप्राय दु:ख से ही दुःख उत्पन्न होने का नहीं है, अपि तु यह है कि पुद्गल के द्वारा वह स्वयमेव कृत है। दूसरे ने करके उसे नहीं दे दिया है। इस पर सिद्धान्ती कहता है मनुष्यों का दुःख पञ्चोपादान लक्षण है। उसे यदि पुद्गल ने स्वयं किया है,तो उस पुद्गल को बताइये, जिससे उस दु:ख का स्वयंकृतत्व सिद्ध हो । यदि निस दुःख से पुद्गल स्वयं प्राप्त होता है, वह दुःख उस पुद्गल के द्वारा कृत है, तो भेदेन यह बताइए कि 'यह वह दुःख है' और 'उसका यह कर्ता है' । अपि च, यह माने कि मनुष्य के दुःख का आदान पुद्गल है, और उसने उस दुःख को उत्पन्न किया है। तो यह निश्चित नहीं होगा कि जो स्वपुद्गल-कृत है, वह परपुद्गल कृत भी अवश्य होता है । उपादान का भेद रहने पर भी पुद्गल का अभेद नहीं दिखाया जा सकता, क्योंकि उपादाद से अतिरिक्त पुद्गल को दिखा सकना अत्यन्त अशक्य है। दूसरी बात है कि यह दुःख स्वकृत है, तो वृत्ति-विरोध होगा, क्योंकि स्वामा में ही करणत्व तथा कर्तृत्व मानना पड़ेगा । परकृत दुःख भी नहीं मान सकते; क्योंकि पर स्व से निष्पन्न नहीं है। जो स्त्र से निष्पन्न नहीं है, वह अविद्यमान स्वभाव है । स्वयं अविद्यमान- खभाव दूसरे को क्या संपन्न करेगा ? दुःख जब एक का कृत नहीं है, तो उभय-कृत भी सिद्ध नहीं होगा । उक्त न्याय से यदि दुःख का स्वयंकृतत्व, परकृतत्व सिद्ध नहीं हुधा की निहतुकता का प्रश्न भी नहीं उठेगा; जैसे श्राकाश-कुसुम की सुगन्धि के लिए निर्हेतुकता का प्रश्न नहीं उठा सकते । आचार्य चन्द्रकीर्ति कहते हैं कि उपयुक्त न्याय से जब दुःख सिद्ध नहीं होता, तो उसके आश्रयभूत अात्मा की सिद्धि का प्रश्न ही क्या है ? संस्कायें की निस्वभावता तो दुःख अत्र श्राचार्य पदार्थों की निःस्वभावता प्रकट करने के लिए संस्कारों की परीक्षा करते है। कहते हैं कि भगवान् ने सर्व संस्कारों को मृपा और मोषधर्मा' कहा है। अालातचक्रवत् समस्त संस्कारों का पाख्यान वितथ है। केवल निर्वाण मोषधर्मा नहीं है, सत्य है । इसके अतिरिक्त सब धर्म निःस्वभाव होने से शून्य हैं । यहाँ वादी शंका करता है कि मोपधर्मा होने से यदि सब संस्कार मृषा है, तो आपका यह कहना भी कि 'कोई पदार्थ नहीं है। मृरा-दृष्टि होगी। प्राचार्य कहते हैं कि सर्व संस्कारों की मोषधर्मता अवश्य है, किन्तु हमारा यह वचन कि 'मोपधर्मा सभी मृषा है। क्या मोषण (वंचना) किया ? अवश्य ही यदि कोई सत्-पदार्थ होता और उसका हम अपवाद करते तो हमारी दृष्टि अभाव-दृष्टि होती, और उसे श्राप मिथ्या-दृष्टि कह सकते । .. एकवि स खलु मिक्षवः परमं सत्यं यदिदममोषधर्म निर्वाणम्, सर्वसंस्काराणा एषा मोषधर्माण इति मा. का. पृ. २३.] ।