पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६६

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आचार्यजी और बौद्धदर्शन प्राचार्य नरेन्द्रदेव को राजनीति, समाजनीति और भारतीय संस्कृति एवं इतिहास के क्षेत्र में बो नेतृत्व, प्रकाण्ड विद्वत्ता एवं अपूर्व कल्पनाशक्ति प्राप्त थी उससे देश पूर्ण परिचित है, किन्तु दर्शन के क्षेत्र में विशेषतः पालि तथा बौद्ध-दर्शन के चेत्र में उन्होंने बो कष्ट साध्य विद्वत्ता अर्जित की थी, उससे कम लोग परिचित हैं। इतिहास और संस्कृति के अध्ययन ने ही उन्हें बौद्ध धर्म और दर्शन की ओर आकृष्ट किया। उन्होंने पालि के विशाल वाङ्मय का उस समय अध्ययन किया जत्र अध्ययन की अपेक्षित सामग्री उपलब्ध नहीं थी और पूरे भारत में इने-गिने विदान ही इस दिशा में प्रयास करते थे। अध्ययन की इस अपरिचित दिशा की और वह अकेले बढ़े थे, फिर भी उन्होंने पूरे त्रिपिटक और अनुपिटल साहित्य का तलस्पर्शी गान प्राप्त किया था। आचार्यत्री के गंभीर निवन्ध इसके प्रमाण है कि उन्होंने 'अभिधर्म पिटक' के उन अंशों का भी गंभीर अध्ययन किया था जिसका अध्ययन पूरी सामग्री प्राप्त होने पर भी प्रान देश में नहीं हो रहा है। स्थविरवाद के शमथयान ( समाधि ) का अध्ययन अपनी दुरूहता के कारण विदेश के बौद्ध मठों में भी उपेक्षित-सा रहा है । श्राचार्य बी ने इस विषय के मूल अन्यों के अतिरिक्त अट्टयानो ( भाष्य व्याख्यात्रओं) तक का सांगोपांग अध्ययन किया और इन विषयों पर गंभीर निबन्ध भी लिखे। इसके लिए उन्हें सिंघली और बी प्रन्यो की सहायता लेनी पड़ी। बौद्ध धर्म और दर्शन की दिशा में प्राचार्य बी की अप्रतिमा विशेषता यह थी कि उन्होंने स्थविरवाद और हीनयान के दर्शन और धर्म के दुरूह अध्ययन के साथ- साथ संस्कृत के महायानी दर्शनों का भी मूल ग्रन्थों से अध्ययन किया था। संभवतः इस उभयता के श्राप एकमात्र उदाहरण है। महायानी दर्शनों का अध्ययन उन्होंने मूल संस्कृत से किया था और फ्रेंच, अंग्रेवी कृतियों का मी अाधार लिया। बौद्ध धर्म और दर्शन की हन समस्त शाखा-प्रशासनों का अध्ययन उन्होंने सन् १९३३-३४ तक पूरा कर लिया था। यह सत्य है कि आचार्य जी के बीवन के परवर्ती २०-२२ वर्ष समाजवाद और मार्स के बीवन दर्शन से अत्यधिक प्रभावित हुए किन्तु इतने से ही उनके जीवन की व्याख्या नही की पा सकती। उनके पूर्व जीवन से पर जीवन का वो सहन एवं समन्वित अंगांगी भाव या उसे भी देखना होगा। अवश्य ही सन् १९३३-३४ तक उनके बीवन में एक ऐसी सांस्कृतिक भूमि तैयार हो चुकी थी, जिसकी नैतिकता और उदारता बौख-दर्शन के तर्क-कर्कश सेन में परीदित हो चुकी थी और जिसकी हृदय-प्राहिता तथागत की करुया के प्रथम प्रवाह से अभि- पिक हो चुकी थी।