पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६८७

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लिंग की त्रिरूपता लिंग हेतु को कहते हैं। इसके तीन रूप है। लिंग का अनुमेय में होना (सत्व) प्रथम रूप है। इसका होना निश्चित है, क्योंकि लिंग योग्यता के कारण नहीं किन्तु इसलिए है कि श्रावश्यक रूप से परोक्ष ज्ञान का निमित्त है । श्रष्ट बीब भी अंकुर के उत्पादन को योग्यता रखता है किन्तु अदृष्ट धूम से अभि की प्रतिपत्ति नहीं होती यह प्रतिपत्ति भी नहीं होती कि अमुक स्थान में अग्नि है । लिंग की तुलना उस दीप के प्रकाश से भी नहीं हो सकसी बो घटादि को प्रकाशित करता है। यह परीक्षार्थ का प्रकाशन किसी वस्तु के शान के उत्पादन का हेतु है जो उपस्थित है। दीप और घट में कोई निश्चित हमको संबन्ध नहीं है । यद्यपि धूम का दर्शन है तथापि अग्नि की प्रतिपत्ति नहीं होगी जब तक अग्नि के साथ उसके निश्चित अविनाभाव का ज्ञान न हो। अतः लिंग का व्यापार परोक्षार्थ (यथा अग्नि) और दृष्टलिंग (यथा धूम) को नान्तरीयकता (अविनाभाव) का निश्चयन ही है। इस सत्ववचन ( लिंग के अनुमेय में होने से ) से प्रसिद्ध लिंग का निरसन होता है । लिंग को पक्ष के एक देश में प्रसिद्ध न होना चाहिये । यथा-~-वृक्ष चेतन है क्योंकि वह सोते है, किन्तु सब वृक्ष नहीं सोते, क्योंकि उनका स्वाप केवल एक देश में सिद्ध है । अतः अनुमान नहीं है। लिंग का द्वितीय रूप उसका सपक्ष में ही निश्चित सत्व है। इस सत्व ग्रहण से विरुद्ध का निरसन होता है, क्योंकि वह सपक्ष में नहीं है। साधारण अनेकान्तिक का भी निरसन है । वह सपक्ष में ही नही किन्तु उभयत्र वर्तमान है । सपक्ष में ही लिंग का सत्व है । इसका यह अर्थ नहीं है कि सब सपक्ष में इसे होना चाहिये, किन्तु इसका यह अर्थ है कि असपक्ष में न होना चाहिये। लिंग का तृतीय रूप लिंग का असपक्ष में निश्चित असत्व है। अव ग्रहण से विरुद्ध का निरास होता है, क्योंकि विरुद्ध विपक्ष में होता है । साधारण का भी निरास है क्योंकि वह सब सपक्षों में होता है और असपक्ष के एक देश में भी होता है। यथा-शन्द बिना प्रयत्न के होते है । हेतु-क्योंकि वह अनित्य हैं । इस उदाहरण में अनित्यत्व लिंग है। यह विपक्ष के एक देश में है । यथा--विद्युत् श्रादि में (जो बिना प्रयत्न के होते हैं और अनित्य है) और दूसरे देश में यया आकाशादि में नहीं है, जो विना प्रयत्न के नहीं होता किन्तु नित्य है। यहां अनुमेय विशासित धर्मी है। अपक्ष यह है जिसका पद समान है। यह समान अर्थ है। यह अनुमेय के सहय है। यह सामान्य क्या है को पक्ष और सपक्ष को मिलाता है। यह साध्य धर्म की समानता के