पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६९८

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६१० बौर-पने एक चब किसी लिंग का वह रूप जिसमें उसका अपक्ष में निश्चित असत्व प्रसिद्ध है, तो वह अनेकान्तिक हेत्वामास कहलाता है । यथा-साध्य है कि शन्द नित्य है। क्योंकि वह दृश्य है। बो दृश्य है वह नित्य है। यथा अाकाश (दृश्य और नित्य)। घटवत् नहीं ( अनित्य किन्तु अदृश्य नहीं ) । शन्द का प्रयत्नानन्तरीयकत्व है। क्योंकि वह अनित्य है। जो अनित्य है वह प्रयत्नानन्तरीयक नहीं है। यथा विद्युत् और श्राकाश (एक अनित्य दूसरा नित्य, किन्तु दोनो अप्रयत्नानन्तरीयक)। घटादिवत् नहीं (जो प्रयत्नानन्तरीयक है और जिन्हें नित्य होना चाहिये किन्तु अनित्य है)। शुन्द प्रयत्नानन्तरीयक है। क्योंकि वह अनित्य है। बोअनित्य है वह प्रयत्नानन्तरीयक है। यथा घट (बो प्रयत्नानन्तरीयक है)। विद्युत्-श्राकाशवत् नहीं (जो ऐसे नहीं है, किन्तु एक अनित्य है दूसरा नित्य है)। शन्द नित्य है। क्योंकि वह अमूर्त है। जो अमूर्त है वह अनित्य है। यथा श्राकाश-परमाणु ( जो दोनों नित्य ) हैं। घटवत् नहीं ( दोनों अनित्य किन्तु पहला अमूर्त)। इन चार दृष्टान्तो में पक्षधर्म का प्रसव विपक्ष में प्रसिद्ध है। इससे अनेकान्तिकता है। इसी प्रकार जब यह रूप संदिग्ध है तब भी अनैकान्तिक है। यथा साध्य है कि अमुक असर है अथवा रागादिमान है । यदि प्रकृत साध्य में वक्तृत्वादि धर्म को हेतु कई बायें तो विपद ( सर्वश ) में इसका असत्व संदिग्ध है। सर्वश में वक्तृत्वादिक धर्म होते है, अथवा नहीं। अतः अनेकान्तिक है। किन्तु यह कहा जा सकता है कि सबंश वक्ता उपलब्ध नहीं है, तो उसके वक्तृत्व के विषय में संदेह क्यों ? "सर्वज वका का अनुपलम्भ है" यह संशय का हेतु है । अब कोई अदृश्य