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द्रगशतकम् ग्रन्थ

मंगलाचरण-दोहा

प्रान प्रियासु महेश की। तिनके सुत गननाथ।
विधन विनासन सुमति दा। दासन के नित साथ॥१॥
तिनके पद अरविंद को। हाथ जोरि शिर नाय।
बन्दी विप्रसु ग्वाल कवि। रचत ग्रन्थ मन लाय॥२॥
ग्रन्थ संवत् १९१९
संवत निधि शशि निधि शशी। फागुन पख उजियार।
द्वितीया रवि भारंभ किय। द्रगसत सुख को सार॥३॥

दोहा


प्यारी तनसु प्रयाग में। नैन त्रिवेनी चारु।
ताकी चितवन न्हान ते। है बैकुण्ठ अपार॥१॥
प्यारी द्रग हीरा परस। चुनी जटित दुहु धाहि।
पुतरी सालिगराम ज्वे। क्यों न पाप नशि जाहि॥२॥
प्यारी तो तन ताल में। फूले द्रग अरविंद।
चितवनि रस मकरंद हित। मो मन भयो मलिंद॥३॥
प्रान प्रिया के द्रगन की। शोभा इमि दरसाय।
मनो श्वेत अरविंद में। रह्यो मलिंद लुभाय॥४॥
रंग रसीले द्रगन में। पुतरी यों दरसाइ।
मनो अतन तन धारिके। रह्यो सरन है आइ॥५॥
मन हरनी तो द्रगन की। छबि ऐसी अभिराम।
फटिक[१] जंत्र में स्याम मनि। पूजि चढ़ाई काम॥६॥
पिक बैनी अखियान की। खूबी अजब॥
लछमी लसे सुहाग की। मृगगद बिन्दु लगाइ॥७॥
गज गवनी द्रग भूमि में। समरस अति दरसाय।
सांत सिंगार विरोध तजि। बसे कूटि इक आय॥८॥
नित्त पनो निरबाह को करि सलाह रस राइ।
बसे छबीली द्रगन में। हास विगार उछाह॥९॥


  1. मूलपाठ :––फटीक।