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भूमिका : १५
 

१५. दुगक्षतक––छन्द संख्या १ से १०३ तक। पत्र संख्या ९० से ९८ तक, सम्पूर्ण।

१६. भक्ति और शान्तरस के कवित्त––छन्द संख्या १ से २३ तक। पत्र संख्या ९८ से १०२ तक, सम्पूर्ण।

इति भक्तभावन ग्रन्थ पूर्णम्।

परिशिष्ट

१. नेह निबाह छन्द––छन्द संख्या १ से ३० तक। पत्र संख्या १०५ से ११० तक, सम्पूर्ण।

२. बंशी वीसा––छन्द संख्या १ से २० तक। पत्र संख्या १११ से ११४ तक, सम्पूर्ण।

३. कुन्जाष्टक––छन्द संख्या १ से ८ तक। पत्र संख्या ११५ से ११६ तक, सम्पूर्ण।

काव्यपरिचय

इनमें से यमुना लहरी', श्रीकृष्णजू को नखशिख" तथा षट्ऋतु वर्णन" प्रकाशित है। किन्तु इनके प्रकाशित संस्करण संप्रति अनुपलब्ध ही है। संभवतः अन्य सभी रचनाएँ अप्रकाशित हैं। संगृहीत ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है––

१. यमुनालहरी––यह यमुना स्तुति में लिखी गयी महाकवि ग्वाल की प्रथम प्रसिद्ध रचना है। प्रारम्भ के मंगलाचरण के दोहे में राधा को स्तुति की गयी है :––

श्रीवृषभान कुमारिका, त्रिभुवन सारक नाम।
सीस नवावत ग्वाल कवि, सिद्ध कीजिये काम।

बाद के दोहों में ग्वालजी ने अपना परिचय इस प्रकार प्रस्तुत किया है :––

वासी वृन्दा विपिन के, भी मथुरा सुखवास,
श्री जगदम्बा दई हमें, कविता विमल विकास।
विदित विप्र बन्दी विशद, बरने ध्यास पुरान।
ताकुल सेवाराम को, सुत कवि ग्वाल सुजान।

ग्रन्थ के अन्त में इसका रचनाकाल कार्तिक पूर्णमासी सं॰ १८७९ वि॰ दिया हुआ है :––

संवत निधि' रिसिसिद्धि ससि' कातिक मास सुजान।
पूरनमासी परमप्रिय राधा हरिको ध्यान।
भयौ प्रगट वाही सुदिन, यमुना लहरी ग्रन्थ।
पढ़े सुनै आनन्द मिलै जानि परै सब पन्थ।

वामगणना से सं॰ १८७९ वि॰ ही निकलता है तथा विद्वानों के द्वारा भी यही रचनाकाल मान्य है।

प्रस्तुत रचना में ग्वालजी ने यमुना के माहात्म्य का बड़ा ही रसपूर्ण चित्रण किया है। कवि ने यमुना की पावनता, नाम महिमा, यश-कीर्ति-दर्शन-फल, लोक प्रसिद्धि, पापनाशिनी,