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यमुनालहरी : ७
 

कवित्त


रेवतीरवन कीने वसन विचित्र वेश। राधिकारवन कीन्हें वपुष विशाल ह्वै।
चंद में प्रतिबिंब रूप रावारो दिखाई देत। लीनें चंद्रधर हू तमोगुन खुसाल ह्वै।
ग्वाल कवि कमला किये हैं कर कंज नील। नीलमनि भूषन बनाये जग जाल ह्वै।
मारतंड तनया तिहारो शुभ स्याम रंग। हो पद लोकन को मंडन विशाल ह्वै॥३२॥

कवित्त


धारे अंग अखिल कलापी महाकाली आप। कोनो काय वैसो फनधारी ने खुसाल ह्वै।
ताल में सिवाल भयो तरु में तमाल भयो। तीरन में भाल भयो सत्रुता में साल ह्वै।
ग्वाल कवि गोरिन ने अंजन अंजाये नैन। कीनी मसि लिखिबे कों वेदविधि हाल ह्वै।
मारतंड तनया तिहारो शुभ स्याम रंग। होय रह्यो लोकन को मंडन विशाल ह्वै॥३३॥

कवित्त


साल में सलाबे शत्रु पुंजन को सोर सुने। मित्र न मिलावे मति मंजुल खुसाल में
हाल में न आवे तन ताको किये त्रासन तें। करन कुटुम्बन को अधिक निहाल में।
लाल में लसावे बहु भूषन शरीर ताके। भाखैं कवि ग्वाल मन करै प्रन पाल में।
भाल में बिराजे मोर चंद्रिका विशाल वेश। न्हान करे जमुना जे तेरे जल जाल में॥३४॥

कवित्त


रविजा कहेते रनजीते जोम जोरि जोरि। जमुना कहै तें जमुना के होत हेर बिन।
भान होत कीरति प्रभान के परम पुंज। भानु तनया के कहते ही फेर फेर बिन।
ग्वाल कवि मंजु मारतंड नंदनी के कहे। महिमा मही में होत दानन के ढेर बिन।
दरिजात दारिद दिनेश तनुजा के कहे। कहत कालिंदी के कन्हैया होत देर बिन॥३५॥

कवित्त


आदि में रमा के रसरूप देनहारी तू ही। मध्य कुबिजा के करे कीरति प्रचारी तू।
अंत विधिजा के जग जाहिर करैया तू ही। जहर जमेश की जलूसन को भारी तू।
ग्वाल कवि बरन बरन किये बरनन। बरनन तेरे में लग्यो है चितधारी तू।
महिमा तिहारी महा महिमा निहारी मात। रविजा कहे तै करे रसिक विहारी तू॥३६॥

कवित्त


सुस्ती बेसुमार एक कुस्ती गीर ताको भई। बोल्यो जमदूतन[१] लयो मैं थेर ओक में।
पारसद आये ले विमानन के पुंज तहाँ। बोले चढि लीजिये चढे जो चित्त कोक में।
ग्वाल कवि वह तो सवार ह्वै चल्योई फेर। भाखे मगमाहि जो करो मुकाम थोक में।
जो लों कहे नाल भूलि बायो मैं अखारे बीच। तौलो जाय पहुँच्यो तुरंत हरिलोक में॥३७॥


  1. मूलपाठ:––जमदुतन।