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यमुनालहरी : ९
 

कवित्त


कैधों नीलकंठ के कंठ की प्रभा है चारु। फेली बेसुमार खंड-खंडन खजी है ये।
कैधों कालिका के करवाल की कठिन धारै। चमक पसारे चहूँ और में पगी है ये।
ग्वाल कवि कैधों दर्श जल सर्पमाहि। आइके बसी है तासु शोभ उमगी है ये।
जोर जग जाहिर जलूस की जमातें जुरि। कैधों जमुना को बेरा लहर जगी है ये॥४४॥

कवित्त


कैधों वीर अर्जुन घरे है बहु भेस वेश। तारी छवि छाया की मयूष मंजु लोखी है।
कैधों खंजनन की खुली है पाति पूरन ये। तेई भांति भाँति भले भायन सों दीखी है।
ग्वाल कवि केधों रवि चंद लरि= को भयें। तातें राहु अति विमतार ताई सीखी है।
बेसुमार पारावार पारन लों जाइवेकों। कैधों रविजाकी ये तरंगें तेह तीखी है॥४५॥

कवित्त


कैधों जल अमल लबालब भरे में भल। उझल परी है नभ नवल अपारे ये।
कैधों स्याम तरु की मही पे पूर पातें गई। ताकि भांत भांत मूर परमा पसारे ये।
ग्वाल कवि कैधों लंक असुर संघारिने को। धारे बहुभेस राम ताकी दुति ढारे ये।
अतुल तिखाईतें जताई तरलाई भरि। कैधों मारतंड तनया की चारु धारै ये॥४६॥

कवित्त


कैधों सनि सहस सरूप सुठि धारे शोधि। तारी सरसाई बेश शोभा ये डहडहात।
कैधों धनी धोर धोर धुमिरसु घोषनतें। घिरत धनावली घमंड ये गहगहात।
ग्वाल कवि कैधों द्रुपता की चारुताई चारु। ताकी चढो चख चमके ये चहचहात।
कैधों जमुना की जमि जबर जलूसें जगि। जुरिके जमातें जोर धारे ये लहलहात॥४७॥

कवित


कैंघों बेश बानिक बन्यो है बन वृन्दन को। बरन बहारें बल वातन के गहरे।
कैंधों मतवारे मदवारे मोदवारे मूरि। मंजुल मतंगन के झुंडशूमि शहरे।
ग्वाल कवि केधों शुभ्र सिंधु सरसाये तासु। सरसी सुधारै बेसुमारे हल हहरे।
कैधों रविजा की लोल लहर लुनाई लसो। छविकी छटासों छिति छोरन सों छहरै॥४८॥

कवित्त


आइहों कहाँ तें धरनी में धार तेरी[१] मात। धक धक होत है जमेश होय कमुना।
धरम धुजा की खड़ी करन तुही है एक। धन्य धन्य जगमांहि तेरी और समुना।
ग्वाल कवि परम प्रकोप करि पेठे पेलि। पावन के पुंजन में राखे नेको दमुना।
कठिन करारन की कोरन कलित केलि। कतल करैया तूं कलेसन की जमुना॥४९॥


  1. मूलपाठ:––तेरि।