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यमुनालहरी : १३
 

कवित्त


जोवे ख्याल जमुना निहारे जमराज आज। तारे तिनहूँ को महा पापन विलोवेते।
खोवे निज चित्त में तलास महापापिन को। नित चित्रगुप्त मूंड मार मार रोवेतें।
गावे पन परम प्रवीन कवि ग्वाल भने। अदया सुभायनतें छमता समोवेंतें।
घोवें निज अंगन तरंगन में तेरे आय। जाय बैकुण्ठ में पसारि पाय सोवेंतें।६८।

कवित्त


सूरज सुता के ताके परम प्रताप साके। नाके हू जमेश अंग माहि काँपे है।
हाय हाय भारवत सु चित्रगुप्त चौंके चित्त। चतुर चलाँकी दूत दूतन को चाँप है।
ग्वाल कवि विविधि विचार करि हारी मति। बैठे बेकरार जल जमुना को नापे है।
झुकि झुकि भूमि झूमि झिझकि झिझकि झेले। झहरि महरि नर्क झां‌पनतें झाँपे है।६९।

कवित्त


तनया दिवाकर की राजस विलोकियत। दरस करैयनकी कीरति अटाकरी।
परस करैयन की महिमा मही में मंजु। पुंज देवतान के पे घुमडि घटाकरी।
ग्वाल कवि दरस परस कर वैभव की। दीप दीप लोकन में तेज की छटाकरी।
अधओध संगत और जन्म जोनि पंगत की। ह्वै के बेकरार इकबार ही कटाकरी।७०।

कवित्त

प्रबल प्रभाकर की तनया तरङ्गन में। तनु तनु धोये जसदीपन जुर्यो परे।
ताके तेज पुञ्जनतें दुःख के पहार भार। पाय बेसुमार बेकरार है चुर् यो परै।
ग्वाल कवि कांसो यह कहिये अकह बातें। हातें भये दूतपन परम दुर यो परे।
जाहिर ही जबर जलूसदार जुलमी पें। आज जम जिभ्या पर जहर घुर्यो परे।७१।

कवित्त


आन भरी अधिक कृसान भरी पापन को। दान भरी दीरघ प्रमानमान कमुना।
तेज भरी मंजुल मजेज भरी रीझ भरी। खीझ भरी दूतनकों दाहे दोरि समुना।
ग्वाल कवि सुखद प्रतीत भरी प्रीत भरी। रोत भरी परम पुनीत मीत गमुना।
जंगभरी जमते उमंग भरी तारिजे कों। रंग भरी तरल तरंग तेरी जमुना।७२।

कविस


एरी रविनन्दनी अनन्दन की मूल मंजु। मेरे हिये संशय अछेह अति भारी है।
कंधों तुव आगे पानि जोरे जमराज आजु। स्वासे लेत करध ये सुधि न सम्हारो है।
ग्वाल कवि कैषों चित्रगुप्त चतुर चारु। लोटे बेकरार धुने शीश मतिहारी है।
कैधों दूत दौरि दौरि दहलात दुरिबे कों। कैथों लोल लहरे ये लहरे सिहारो है।७३।