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२० : भक्तभावन
 


ग्वाल कवि केसें अनन्द नन्दनन्दन को। देखतौं बरुन, जो सदा पुरान गावती।
जाते मिटिं करम मुनीसन कों वीसो वीस। जो न जमुना की या धरा पे धार आवती॥१०८॥

कवि वचन-दोहा

संवत निधि रिषि सिद्धि शशि। कातिक मास सुजान।
पुरन मासी परमप्रिय। राधा हरि को ध्यान।
भयो प्रगट ताही सुदिन। जमुना लहरी ग्रन्थ।
पढ़े सुने आनन्द मिले। जानि परे सुर पंथ।

 

इति श्री ग्वाल विरचिते यमुनालहरी ग्रंथ संपुरणम्।