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श्री गणेशायनमः

अथ श्री कृष्णचंद्रजू के नखशिख ग्रंथ

मंगलाचरण


बीन करवर हंस कलित बखानियत। कीरति तनैया सुरगावत मुनीसुरी।
धुनि रूप मुखचंद प्रसिद्धि प्रमानियत। जल जन माल मृदुलता विसवेसुरी।
ग्वाल कवि निगम पुरान की आधार कहे। सुन्दर तरंग करि सके को कवीसुरी।
बरने विशेष कवि पावत नहीं है थाह। संपति भरैया महाराधा जगदीसरी॥१॥

दोहा


श्री गुरु श्री जगदम्बिका। श्री पितु दया सुभाय।
तिनके चरन सरोज कों। वंदत शीश नवाय॥२॥

कवि विनय


कृष्णचंद महराज के। तनकी शोभ अपार।
सेष महेश गनेश विधि। नारद व्यास विचार॥३॥
गुन सागर महराज के। गावत मिले न पार।
सो छबि केसें कहि सके। अल्प बुद्धि व्यवहार॥४॥
लघुमति तू क्यों तरे। गुन छबि सागर पूर।
चढ़ि पपीलका पीठपें। क्यों पहुंचे मग दूर॥५॥
थोरि बुद्धि कवि ग्वाल की। गुन हरि के सु अनंत।
चित संकित अति होत है। किमि करिये बरनंत॥६॥
श्री गुरु सुकवि समूह की। चरन कृपाधरि शीश।
बरनत कछु कवि ग्वाल अब। पंथ पुराने दीश॥७॥
श्री जगदंबा की कृपा। ताकरि भयो प्रकाश।
वासी वृंदाविपिन को। श्री मथुरा सुखवास॥८॥
विदित विप्रवंदी विशद। बरने व्यास।
ताकुल सेवाराम को सुत। सुत कवि ग्वाल सुजान॥९॥

ग्रंथ संवत


वेद सिद्धि अहि रेनिकर'। संवत आश्विन मास।
भयो दशहरा को प्रगट। नख शिख सरस प्रकाश॥१०॥