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नखशिख : २५

कवित्त


होत ही प्रभात प्रात मठा को मथत जब। मचलि मथानि गहि माखन चख्यो करो।
सांकरी गली में रोकि रोकि ब्रजबालन के। कुचको परस रस हेतहु लख्यो करो।
ग्वाल कवि तंदुल सुदामा में चवाये जाते। तीन लोक बकसि सुभाव ही लख्यो करो।
वेई हाथ आपने सुनो हो ब्रजनाथ नाथ। जानिके अनाथ मेरे माथ पें रख्यो करो॥२९॥

लकुट वर्णन


काढी काप तरु में तें सूधी मजबूत देखि। चाही विश्व कर में खराद खुसखासा है।
चापी कर तारन के जाल करि रंगत पें। चिंतामनि जड़ित वृन्दावन को वासा है।
ग्वाल कवि नंद के लडाइते कुंवर जू को। लकुट लड़ेतो ताकी ताक्यो में तमासा है।
मानो श्री सनेह को समर एक चोबदार। ताके पानि मंजुल में अद्भुत आसा है॥३०॥

बाँसुरी वर्णन


कैंधो चर अचर वसीकर करन वारो। मंत्र लिखि जंत्र सिद्धि कियो तीरथन में।
कैंधो छहराग और रागिनी सुतीसन के। वासको सदन रंग्यो सात हू स्वरन में।
ग्वाल कवि कैधों शिव सनक समाधान को भेदन करैया सरशोच देख्यो मन में।
कैंधो सुधा नद के प्रवाह को वहन हारो। बेनु श्री बिहारी को बजत वृन्दावन में।३१

भुज वर्णन


कैधों भल विमल कमल जुग जोइयत। सुन्दर है नाल अति सुखमा समाज की।
कैधों ब्रजबालन के गोरे गरे डारिबैंकों। मोहनी की फांस द्वै मदन गढ़राज की।
ग्वाल कवि कैधों भवसागर उतारिबे की। वल्ली है बुलंद बिधि भक्तन के काज की।
कैधों चार चाकते भवाय के उतारी भली। भावती भुजा है महाराज व्रजराज की॥३२॥

कवित


कैधों ब्रह्मांड के अरबंडल पराक्रम की। वासनी अनोखी ये भरी है सुभ काज की।
कैधों बेस विदित विशाल है तमाल तेज। तातें रही लतिका लटिकि लोने साज की।
ग्वाल कवि कैधों दीन दुःखन के दंडिबे को। दंड है अभे के सींवा सुखमा दराज की।
कैधों चार चाकते भवाय के उतारी भली। भावती भुजा है महाराज ब्रजराज की॥३३॥

कंठ वर्णन


वाकी धुनि में तें एक धुनि हो प्रतीत होत। ताहू में न प्रीत बहु सुने उलहत है।
याको धुनि सुनी मुनि मेरु के प्रवासी मोहे। बरन बरन मृदु माधुरी लहत है।
ग्वाल कवि वापें कोऊ भूषनन जेब देत। यापे भले भूषन को जेब उमगत है।
कारन करन कान्ह करुना निधानजू को। कंठ कमनीय कंबु कुल तें कहत है॥३४॥

कवित्त


परा पस्ययंती मध्यमाते मिली मौज़ भरी। वैखरी विचित्रित अधार वेद चारि को।
प्रतिभा प्रकाश परिपूरन करनहार। शीशधर दोऊ को मध्यस्त हितभारी को।
ग्वाल कवि मधुर सुधाहूँ ते सरस सुर। ताकी करें चाह सुर नाग नर नारी को।
भूषित करत निज भूषन कों भूषित है। पूषित प्रभान गोल ग्रीव गिरधारी को॥३५॥