अथ गंगा स्तुति
कवित्त
करन दया की इंदिरा की है भरन वारी। पूर फल करन गया को दुख हर है।
वारन करत संभु शैलजा करत नीके। सहा सुझावे रमापति को शहर है।
ग्वाल कवि कहे जम जाल को निहाल करें। अमित विशाल गुन गुन को गहर है।
टारन कलेश को सुढारन सुजस पुत्र। कारन लहर सुरसरि की लहर है॥१॥
कवित्त
विग्रह अनुग्रह दुहन के करन वे तो। आप बिन विग्रह अनुग्रह ही भरि सकै।
पाप अनगन जन मन के हरत आप। वे तो जन मन हू कैं पापको न हरि सकै।
ग्वाल कवि तेरे नाम लिये वामदेव होत। उन्हें जपि हारै तऊ ध्यान में न अरि सकै।
आपको सहज सुरसरि पर तेरी। सुरसरि ह्वै कियो पे न करि सके ॥२॥
कवित्त
जाकी तमा सबकों अनूपमा रमा है वही। शमाले गुलाब के झमावे पे लगत है।
काली विषझाली के फनालीने परस करि। भये अभयाली अरु अबलों सजत है।
ग्वाल कवि कहै प्रहलाद नारदादि सब। धरि धरि ध्यान सरवोपरि रजत है।
मेरे जान गंगे! तुम प्रगटी तहाँ ते तातें। मुख्य करि माधव के पद ही पुजत है॥३॥
कवित्त
देवधुनि भैया के रिझैया को चरित्र यहै। यामें जै अन्हैया खेया भंगभोग है रे।
अंबर छिनैया है दिगंबर करैया और। छया है वघंवर की भस्म सैया दैहै रे।
ग्वाल कवि थैया थैया भूतन चैया होत। वाह वाह बुलेया भूतनाथ मुख ऐहै रे।
बैल पें धरैया करे शैल पें चढ़ेया फेर फेल को बकैया भैया हम तोन ह्वैहै रे॥४॥
कवित्त
शीतल सुधासी है सुधारी त्यों सनित सुचि। सुंदर सुहावनी सुखेनी है महेश को।
काटत कलुष दुःख सनमुख आवत हो। वयुष बढ़ावे तेज रुख के प्रवेश को।
ग्वाल कवि गालिब गजब जमदूतन पें। अजब दिवाने भये तारे देख देश को।
लहर तिहारी हरिन हर निहारी गंग। कहर कलेश की है जहर जमेश को॥५॥