पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१०४

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१० . भट्ट-निवन्धावली . . . इन अागन्तुको में अमित असीम महामिमालीवरुणालय को नापते- डाँकते एक ऐसे आये जो अपनी काल- व्याल-सी भीषण विकराल दृष्टि के पात से उस बूढ़े वागवान को संत्रासित करते नस-नस उसकी ढीली कर डाला । भोला भाला वागवान इसी ख्याल में था कि यह भी हमारी इस मनोहर वाटिका पर रीझ यहाँ बस हमारा एक अंग वन जायगा । किन्तु यह नया पाहुना ऐसा चालाक निकला कि इसने उस समस्त वाटिका को तिल-तिल नाप जोख बात को वात में अपना अधिकार उस पर जमा लिया और सरल चित्त बाग के माली को सब ओर से ऐसा जकड लिया कि अव यह इस नये पाहुन के पेंच मे पड़ा हुश्रा सब भांति वेबस हो गया और जो कुछ समझ रक्खा था कि थोड़े दिन के जोर-जुल्म के बाद या तो यह चला जायगा या बस जायगा तो औरों की तरह यह भी हमारा ही होकर रहेगा सो सब बात उलटी पड़ी। यह पहुना चालाकी में एकता निकला । पहले वालों का सब दास्तान जान चुका था और बागवान की प्रलोभन शक्ति को भी खूब टटोल लिया था। इसने अपनी जन्मभूमि का सम्बन्धन छोड़ा वरन् जहाँ जो कुछ हीर पदार्थ इसने पाया अपनी मात्र-भूमि में भेजना प्रारंभ कर दिया और रावया वागवान और बाग जो निःसल्य कर डाला। प्रस्तु, यद्यपि इस वाटिका की सर्वाङ्गसुन्दरता हर ली गई और पहले की सी पवित्रता-उज्वलता .अब कलुषित और दगीली कर दी गई, फिर भी ऐसा-ऐसी क्यारियां इसमें मौजूद है कि जो जिस तरह के फल-फूल का रमिक है पर यहाँ पहुँच अपनी रुचि के अनुकूल उस तरह का पाय मनमाना उसे छकर तुम और अघाया, हुमा अपने पं. मालूम कर सकता है। पहले हम अपने पढ़नेवालों को उम क्यारी के पास ले जाते हैं जो इस वाटिका के जीारण्य में समोर लवी लंबी घास और नुकीले मुये को भौति चुभनेवाले काँटों से ।