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पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१०५

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A २१ -विशाल वाटिका - . पहले इसके कि इस विशाल वाटिका का हाल हम अपने पंढने- ‘वालों को कह सुनावें उचित जान पड़ता है कि जिस बाग का सैलानी , , हम उन्हें बनाते हैं, उस बाग के वागवान के साथ उनका परिचय करा दें। यह बागवान यद्यपि बूढा हो गया है और अब इसकी नस- मस ढीली पड़ गई है, पर बागवानी के हुनर मे सब भाँति कुशल अपने नये नये साथियों से कहीं पर किसी अंश मे कम नहीं है । इस बाग के माली मे यह एक अनोखा गुण पाया गया कि इस बाग की । सर्वाङ्ग सुन्दरता पर मोहित हो यहाँ श्राया, उसे इंसने इतना लुभाया कि वह अपनी निज की जन्म-भूमि को भूल यहीं का हो गया। इस . तरह के पाहुने एक दो नहीं, वरन् न जानिये कितने आये और आते 'जाते हैं। कितने भूत के आकार से लम्बी-लम्बी दाढ़ी वाले यहाँ के फूल-फल पर प्रलोभित हो आये । जो कुछ हाथ लगा, नोचखसोट चम्पत हुये। एक इन लुटेरों में से पांव का लँगड़ा भी था। कोई-कोई आये तो इसी मनसूबे से कि जो कुछ पा ले लेवाय चल खड़े हों, पर- इस बाग के माली के साथ उनको ऐसी खिल्तमिल्त हो गई कि वे भी अपनी जन्मभूमि को भूल यहीं के हो गये। कोई अदला-बदला करने की इच्छा से आये, उनकी उजाड़ ऊसर धरती मे जो कुछ उन्हें मिला उसे यहीं छोड़ यहाँ के सुस्वादु रसीले और सुगन्धित फल-फूल ले गये। कुछ दिन के उपरान्त उनको भी जंगल, उजाड़ और असर धरती में रहना पसन्द न आया । इस चतुर माली के कोमल बर्ताव से इस मनोहर वाटिका पर मोहित हो उन्हें भी यहीं अपना घर बनाना पसन्द आया।