भट्ट-निबन्धावली . कौशन, हाथ की कारीगरी, विज्ञान-चातुरी, शिल्प और वाणिज्य दूर- दूर के देश तक विख्यात रहा । इमी से बाग के माली का अनेक बार की लूट-पाट पर भी जग मन न-मटका, सदा सुख-चैन की दशा मे रहा आया। किन्तु थोड़े दिनों मे अकाल-जलदोदय की भांति एक । ऐसी घटा उमड आई कि जो शिल्प और वाणिज्य दूर देश तक फैला था और जिसकी कदर की थाह न थी, खुरखुरा, भद्दा और मोटा वरन् घिन के लायक हो गया। ____ हम इसके मालिक को धन्यवाद देते हैं जो इस क्यारी की भूमि मे एक ऐसी-खाद छोड़ चले कि विदेश मे' आई हुई वह घटा छिन- भिन्न हो गई। परदा जो आँख के सामने श्रा, हट गया; एक बारगी सबके सब चौंक पड़े, जैसा कोई सोते से जाग उठे। साचने लगे, हाय हम सब लोग किस मोह जाल मे पड़े थे । अव नये सिरे से इन क्या- रियों के पेड़ों को सींचने और सानने में बड़ी सावधानी से दत्तचित्त हो रहे हैं । श्राशा होती है, अब यहाँ के फूल फल पहले से भी अधिक सर्व मान्य होंगे। वागवान जो दीन दशा में आ गया है और इसके लड़के-बाले जो काम न रहने से भिखारी हो गये, बड़े-बड़े धनियों के समकक्ष हो जाय तो क्या अचरज ? चलिये, अव श्रापका दूसग 'क्यारी की सैर करावं, जहां की पुण्य भूमि और पवित्र स्थलियों में कल्पवृक्ष-से 'पादप उपज कर अपने जगद्विदित प्राण-तर्पण सुरभित कुसुम की कुसुमावलियों में ससार की कौन ऐसी दार्शनिक-मण्डली, विविध कला-कोविद-विद्वानों का ममूह, कवि-समाज, नथा वैज्ञानिक बच रहे जहाँ इन फूलों की सुगन्धि नहीं पहेनी । पेशगोई और नवूनते का भांडा गाड़े हुए धर्म के प्रचारक . बा ईश्वर का एकलौता पुत्र तथा जगत् का प्राणकर्ता कह अपने को प्रमिद किये ये वे भी इन क्यारी के वृक्षों का फल 'चव कृतकृत्य हों. गये और यहाँ के अमोघ ज्ञान के दो-चार विन्दु पाय अपाय उठे।
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