पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/११३

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मेला-ठेला ६७ अब यह दूसरे कोन आये-रियासत की गठरी का बोझ सिर पर लादे राय कंबख्तचन्द के वली अहद बदबख्त बहादुर । जरदी मुंह पर छाई हुई सीकिया पहलवान क्यों हो रहा है ? क्या इसको बदन सुखाने वाला रोग हो गया है ? नहीं-नहीं ऐयाशी और शराव ने इसका यह हाल कर डाला । कुन्दे नातराश यह दूसरा इसके साथ कौन है-नरकू महाराज के सगे नाती, अक्षर में भी कभी भेट हुई है, .. कौन काम हे ? न हम पढ़े न हमरे आजा। पढ़े-लिखे क्या सुत्रा- मैना है, पढा लिखा तू पच। "बह-यह बहै बैलचा बैंठ खॉय तुरंग ।" हमारे कुन्न ये पढ़ना-लिखना नहीं सोहता। हमारे बाप के छोटे ताऊ गठरी भर पोथी पढ डालिन । रहा जगनै उजहि गये। तब से हमारे तात चरण का सिद्धान्त हो गया है- "हस पंचन के वंश में कोई नहीं विद्वान" भाँग पियें गांजा पियें जय बोलै जिजमान ॥" "चपलान् तुरगान्परिनत यतः पथि पौर जनान्परिमई यत्तः।" ये कौन हैं-सींग पूछ कटाय बछड़ों न दाखिल अहल योरप पूरे जेन्टिलमेन शाह पनारूदास । 'वाबू न कहना फिर कभी मिस्टर कहा जाता है हम । कोट पतलून बूट पहने टोकरी सिर पर घरे । साथ मे कुत्ते को ले के सैर को जाता है हम । दियानतदार अपने कौम में मशहूर हैं। सैकड़ों लोगों ने चन्दा लेके खा जाता है हम । गिना-पीना हिन्दुओं का मुझको खुश माता नहीं। वीफ, कोटा, चमचा से होटल में जा खाता है हम । भाँग, गांजा, उसे, चडू घर में छिप-छिप पाते थे। अब तो वे खटके हमेशा दिनि टरफाना है हम "