पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१२०

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१०६ . भट्ट-निबन्धावलो . 'व्यापार करते हैं, बड़ी भारी दूकान है, लाखों का वारा-न्यारा ' महीने में होता है, सिरे सराफ मे गिनती है, प्रकृति और प्राकृति दोनों मे पूरे पिशाच. दूसरे की जमा कहो सर्वस्व गटक बैठे अपनी एक कौड़ी भी निकलती हो तो काई-छ,काई-छु कर दिमाग चाट डाले। व्योपारी चाहता है कि हम सेठ जी की लिपड़ी वरताना कर ले और सेठ जी इसी ताक में हैं कि यह खूसट जाने न पावे, जहाँ तक हो सकें इसका ऐसा वस्त्र-मोचन कर ले कि तसमा न बचे। दलाल अपनी ही घात में है. यह हजरत व्यापारी और सेठ जी दोनों को गावली दे अपना मतलव गांठ चम्पत हुआ चाहते हैं। फकीरचन्द भिखारीदास की २५ हजार की हुण्डी ५४ मिती को ली थी, मिती पुरती है, रुपया तैयार नहीं है, आज नहीं देते. दिवाला पिटता है, मुनीम और गुमास्तों पर होव-हाँव खाँव-खांव, कोई कुछ वोला काटने को दौड़े, किसी नी वात नहीं पोसाती। दूकान का पट उलट मुंह छिपाये सोच रहे है, सब संसार में क्या मुंह दिखावेंगे, बात गई तो जी ही के । क्या करेंगे, ऐसी जिन्दगी से तो मौत भली । जो कुछ सेठानी का जेवर था सो सब वेंच भी चार दिन हुये तिनकौड़ीमल गरीवदास का १५ । हजार का सट्टा रख लिया था: मिती पूजने पर ज्यों-त्यों कर दे इज्जत चाया, प्रजेवर भी न रहा, क्योंकर बात रहे। वरसों तक दिनी रात पढ़ते-पढते आंख कमजोर पड़ गई, चश्में की हाजत हो गई । "नई जपानी माँझा दीन शेखचिल्लियों का-सा मनसूया गांठते हैं, अब की बार इन इम्तिहान से पार हुये तो दूसरे , माल वकालत या इंजीनियरिंग के लिये होशिश करेंगे; 'प्रोवल हुये ' तो तमगा पावेंगे, बड़े-बड़े लायकों में शुमार होगा। इम्तिहान देने . गयेः फेल हो गये सब जोश उतर गया, उमंग जाती रही, महीनों तक संमार की किसी बात में मजा नहीं मिलता, मायूसी की हारात में पड़े . पहे सोया करते हैं, तोख्ती जाती ही नहीं।