पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१२२

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१०८ भट्ट-निबन्धावली . समय जो प्राण-संकट होता है वह जी ही जानता है, एडिटरी का, इतना जोश न जानिये कहाँ विलाय गया, जिन्दगी फीकी मालूम पड़ने लगी। लोग समझते होंगे, पण्डित जी बड़े सुखी हैं, बेहने धुने का काफी से ज्यादह मिलता है, नगावड़ी बैल से बैठे-बैठे पागुर किया करते है और ऐंडाते रहते हैं । यह कोई क्या जाने कि यजमानों का ताव मम्हालना कैसी भारी मुहिम है । जिनकी झिड़की और फटकार से बचे रहने की कोशिश जिन्दगी को फीका कर देने के लिये क्या कम तरदुद है । इत्यादि इस के अनेक उदाहरण है, जहां तक चाहिये, पल्लवित करते जाइये, चुकेगा नहीं। नवम्बर १८६२