११० भट्ट-निबन्धावली पूछिये फलाने साहब इस तरह की टोपी क्यों देते हैं या इस फैशन के काट का कोट क्यों पहनते हैं, तो लोग हँसकर रहेगे --"सिड़ी है । क्या उन लोगों की टोपी चा पगडी उनमें कुछ बुरी है", ग बाजे लोग कहेगे-"साहब, उन्हीं में पूछिये जो ऐसे फैशन की टोपी देते हैं। अब यदि उन्हीं महाशय से इस फैशन की छिलावट का कुछ अर्थ पूछिये तो निस्मन्ह वे अपनी 'पसन्द की हुई वजा में कुछ न कुछ भलाई अवश्य नतलावेंगे और सर्व साधारण की टोपी । या पोशाक में यह ऐब है। इसलिये उस दोष के दूर करने को अपने ' वास्ते मैने यह फैशन रक्खा है। अव हम एक श्रेणी के लोगों को और उदाहरण मे लेते हैं, ' और वे ये हैं जा सामान्यतः और सब तरह से अच्छे हैं। पर उनकी किसी एक बात की इतनी ललक है कि हर एक बात में और हर एक मोकों पर अपनी उसी ललक के लिये जान तक देने को मुस्तैद हैं । मान लीजिये, एक, महाशय ऐने है कि उन्हें विधवा-विवाह या स्त्री शिक्षा की धुन बंधी है कोई बात विधवोदाह या, स्त्री शिक्षा में उन्होंने ऐसी देखी है, कोई गुण इन दोनों मे ऐता पाग है जिसमे उनकी समझ से हिन्दुस्तान की यानत् बुराइयों का संशोधन हो सकता है । इस लिये र एक मौको पर अपनी साधारण नातचीत में भी विना उसके गुरण प्रकट किये नहीं रहते। मरस, इस बात में कुछ करके के दिखाने में उदाहरण बनने को भी उपस्थित हैं। अपनी ताकन भर रूपया खर्च परने में भी न सकेंगे। गदि उनकी बात सुनिये और उने अच्छी तरह तौलिये तो सभव है कि वो नई युक्ति उनमें अवश्य पाइयेगा कि जो वे रहते । अत्यन्त पुष्टगा माथ महत में जिस में एक तरह पा जोर पाया जाता है। यद्याप उस वेचार वा काई रिया नहीं है कि और लोग भी उसी . समान कोटि दी जाय पर उसकी गात जो भुगता', को दाप,
पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१२४
पठन सेटिंग्स