। भट्ट-निवन्शवली वना रहूँ। पर दान-कुदान लेने में या किसी सुन्दरी रमणी को देख मौत को भी भूल जाता हूँ और इस रमणी-गाथा की सुध पाती है। "मयस्वनित्यं यदि शक्तिरस्तिते दिने-दिने गच्छति नाथ यौवनम् ।" इत्यादि-इत्यादि पशुक्रिया मे तो मैं कूकर-शूकर को भी मात करता हूँ, यद्यपि व्यास जी ने लिखा है- । । - "ब्राह्मणस्य शरीर हि क्षुद्रकामाय नेष्यते। कच्छाय तपसे चैव प्रेत्यानन्त सुखाय च । सो यह बात दिहाती-सिहाती किसी गवार ब्राह्मण के लिये गढ़ दी गई है, जिन्हें जात-पात का विचार है ।,यहाँ गुरुत्रों का शठ मन - तो. जब चलायमान होता है तब किसी तरह का विचार नहीं रहता और न किसी तरह पर घरे-थावे रुक सकता है। वियोग की दशा जब सताती है अथवा स्त्री-पुत्र आदि रुचि के अनुकूल स्वार्थसाधन में पक्के न मिले तो यही जी चाहता है कि "सर्व स्यक्ता हरि मजेत। फिर जब कमाने की कोई युक्ति देख पड़ती है तब यह शठ मन परम- इंसी वृति धारण कर लड़कपन की पढ़ी हुई वालबोध नाम पुस्तक की सुध दिलाता है और लड़कपन में जो क ख ग घ इत्यादि धोख रक्खा है उसका पूरा बर्ताव किया चाहता हूँ, यथा (क) जैसे हो तैमे रुपया कमाना दान-कुदान खज्ज-अखज्ज का खयाल निरागँवारपन है । (ख) दूसरे का खजाना लूट लेना । (ग) गुरुनाई छाँटना । (घ) घर फोड़ना। (च) चालाकी से न चूकना । (छ) छलछिद्र में एकता होना । (ज) जालसाजी मे गुरूघंटाल बनना । (झ) झट मच बात जोड़ने में उस्तादी हासिल करना । (१) दूसरे का टएटा जान-बूझ बेसहना । (8)दूसरों को ठगना । (ड) दूसरे की थाती डकार जाना । (ढ) धर्म की ढाल श्रागे रख मतलब गॉठना । (त) तस्करता । (थ) याती निगल जाना । (द) दुराचार या दम्भ ! (थ) धर्मध्वनी । (न) नटखटी में पूरी होना इत्यादि। . .
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