पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१३५

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२७-जगत्-प्रवाह वेग-गामी झरने, नदियाँ, समुद्र इत्यादि का प्रवाह रुक जा सकता है; प्रद्योतित बुद्धि के नई अकिल वाले इस समय के विज्ञानियों ने अनेक ऐसे यंत्र, औजार और कलें ईजाद की है, जिसके द्वारा वे तीखी सी तीखी धाराओं के प्रवाह को रोक दे सकते हैं या उसके प्रवाह को उलट दे सकते हैं । किन्तु आज तक ऐसा कोई बुद्धिमान् न हा जो जगत् के प्रवाह को रोक देता या उसे एक ओर से दूसरी ओर को पलट देता। चौकसी के साथ अनुसन्धान करते रहो तो पता लग जाता है कि अमुक नदी या झरने के प्रवाह का प्रारम्भ कहाँ से कब से है और कब तक रहेगा। पर जगत् के प्रवाह का प्रारम्भ कब से है, कहाँ से है और कब तक रहेगा, ख्याल सही नहीं है माफ कीजिये बेअ- दबी होती है । साहब, जिसे श्राप मान, आत्मगौरव और धर्माचरण कहते हैं वह भी रुपये के लिये हैं और रुपये से सघता है। बड़े से बड़े मनस्वी तपस्वी संयमी न्यायशील सब रुपये के लिये तपस्या इत्यादि से हाथ धो बैठते हैं । मैंने बड़े-बड़े तपस्वी और मनस्वियों को अज- माया, रुपया देख सब फिसल गये । इसी के लिये वाप-बेटों में चल जाती है, भाई-भाई कट मरते हैं । उस रुपये की कमी हमको नहीं है; ज्यों-ज्यों आपका घिष्टपिष्ट मेरे साथ बड़ता जायगा, आप जानोगे कि मैं कौन हूँ, मेरा इतिहास किस प्रकार का है। वृन्दावन इसकी ये बातें सुन अचंभे मे आया। थोड़ी देर तक सोचता रहा कि यह तो कोई अद्भुत पुरुष है, मेरे मित्र ने क्या समझ इसे मेरे पास भेजा। यद्यपि वृन्दावन को अपनी लियाकत का कुछ कम घमंड न था, किन्तु इस समय यह उसके रोब में आगया और