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पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/१३८

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२८---नये तरह का जनून ___ थोड़े दिनों से हमारे मुल्क में नये तरह का जनून पैदा हो गया है और इन जनूनियों की संख्या अब इतनी अधिक होगई है कि इनका एके फिरका होता जाता है। अगरेजी तालीम के साथ ही साथ यह उपज खड़ा हुआ है और इस जनून का नाम संशोधन या रिफार- मेशन है। इसका सब से जियादह ,जनून एडिटरों को होता है, जो, दीवानों की तरह जो मन आया सो बक्का किये, कोई चाहो मानी. चाहो न मानो, कुछ उसका असर हो या न हो, जो सिर सवार हुई सो हुई। शुभचिन्तक लोग कितना ही मना करते हैं कि सूत्ररों के सामने अपना कीमती मोती न फेको; इन्होंने राडो के भांति जो एक चरखा शुरू किया, प्रोटते ही जाते हैं, कब किसी की सुनते हैं । यह जनून आर्य- समाजियों को भी किसी से कुछ कम नहीं हैं, कोई कितना ही कहे इन्हें जो झक्क सवार है जो कभी उतरे ही गो नहीं कि वेद अपौरुषेय और स्वत:प्रमाण हैं, पुराण सव गप्प है, वेद में यावत् साइंस और विज्ञान सब उसकी नस-नस में भरे हैं। यों तो पेटारथ न जानिये कितने जनू- निये प्रीचर और उपदेशक के नाम से प्रसिद्ध है. कौन उन की सुने। जैसे किसी को गोरक्षा का जनून सवार है। कोई टेम्परेन्स को यावत्, संशोधन का हेतु मानता है। किसी को औरतों का तालीम सवार है। कोई । विधवात्रों के विवाह के नशे में गड़गाप है। हम अपना एक निराली ही तान गा रहे है कि कमसिनी का न्याह मुल्क से उठा दिया जाय, बम, . देश उन्नति के शिखर पर एकबारगी छलांग मार उछलकर चढ़ जाय । किसी सत्यानाशी को बिलाइत यात्रा सवार है। किसी ने होटलों में बैठ