पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/२३

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कालचक्र का चक्कर

कालचक्र का चक्कर मे जो यहाँ सौदागरी करने के बहाने आये वे अव समस्त भारत के काश्मीर से कन्याकुमारी तक अखण्ड एकचक्रा पृथ्वी के राज्य के अधिकारी हो गये। वही यहाँ वाले जिनको अनादिकाल से यहाँ की भूमि से मातृवात्सल्य रहा और जिनके नस-नस में यहाँ के जल-वायु का असर चुभा हुश्रा है वे कालचक्र की प्रतिकूलता से निकाल बाहर कर दिये गये, बैठे-बैठे ललचाते और मुंह ताकते रह जाते हैं; जो ' कुछ सार पदार्थ और रस है उसका आनन्द एक तीसराभोग रहा है। ये खूदड और उच्छिष्ट ही से अपना पेट पाल लेने को परम सौभाग्य मान रहे थे सो उसमे भी उस चक्र की वक्र कुटिल गति ने ऐसा खलल डाल रक्खा है कि चिरकाल से दुर्भिक्ष और अवर्षण इन्हें निश्चिन्त नहीं रहने देता। इस समय कई और उपद्रवों से कुछ स्वास्थ्य था तो प्लेग अपनी वहादुरी प्रगट कर रहा है । इससे किसी तरह गला छूटेगा तो कोई दूसरी बला श्रा धेरैगी। बड़े-बड़े दार्शनिक वैज्ञानिक योगी तथा भविष्य के जाननेवाले किसी ने इसका भेद न पाया कि क्यों ऐसा होता है। कोई कहते हैं, यह ईश्वर की इच्छा है, दूसरे मानते हैं, नहीं संस्कार का पूर्व- संचित का यह परिणाम है "जो जस करै सो तस फल चाखा", और लोग सिद्ध करते हैं, यह सितारों की गरदिश है। संशोधक और रिफा- मर जुदा ही तान भर रहे हैं कि हम अपने यहाँ प्रचलित कुरीतों को उठाय समाज का संशोधन क्यों न कर डाले जिसमे हमारे मे कौमियत और एकता आवे, मुलकी जोश पैदा हो, कालचक्र की जो वक्र गति है ऋजु गति हो जाय । कोई कहते हैं, यह बाल विधवाओं की पाह है; दूसरे कहते हैं यह बाल्य विवाह का तव दोष है इत्यादि-इत्यादि । हमारे धूर्त शिरोमणि इसी पर जोर दे रहे हैं कि ब्राह्मणों का मान और हिन्दू-धर्म पर विश्वास उठता जाता है उसीका यह फल है; कोई- कोई दवी जबान हिम्मत वांध कही तो डालते हैं, यह सव राजा के