पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/२४

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भट्ट- निबन्धावली

भट्ट-निबन्धावली . '... पॉप या पुण्य का परिणाम है । जो हो वास्तव मे यह क्या गोरखधन्धा : है कुछ नहीं खुलता। ___ 'सच पूछो तो आदमी की शैतानी अकिल एक हारी हैं तो इसी . बात में कि वह कुछ हल नहीं कर सकती कि आज क्या है, कल क्या होगा और इसी को इस संसार इंजिन का बड़ा इंजीनियर अपने हाथ में रक्खे हुये है । यह इस कालचक्र के चक्कर ही का प्रभाव है कि रोम, इन्द्रप्रस्थ, अयोध्या, पाटलिपुत्र, कन्नौज आदि बड़ी-बड़ी राज- धामियों जो किसी समय आदमियों का जंगल थीं, जिनकी लम्बाई-चौड़ाई योजन और कोसों के हिसाब से थी और जहाँ की मनुष्य-संख्या ४० लाख २० लाख १० लाख की गिनती की थी वह इस समय बहुधा तो उजाड़ घुग्घुओं के घोंसलों के लिये उपयुक्त हैं, कोई-कोई नाम मात्र को अगं तक विद्यमान हैं । लन्दन, पेरिस, कलकत्ता, बंबई जो एक समय बहुधा तो उजाड जगल तथा जलममं अनूपं ये वहाँ अव आकाश से । वात करते हुये गर्गनस्पृक् प्रासाद स्वर्णमण्डिन मन्दिरं खेड़े हुए हैं। जहाँ चंचला लक्ष्मी अपनी चंचलता से , मुंह मोई चिरस्थायिनी हो समुद्र की सरग सी हिलको मार रही है, इत्यादि । इस कालचक्र . की महिमा को पार कौन पा सकती है, तंत्र हमारी तुद्रे लेखनी किसे बूते पर इस चकर में पढ़ने की अधिक साहस करे ? पढ़नेवालों के चित्त विनोदार्थ इतना ही सही। . .. जनवरी 146