ईश्वर भी क्या ही ठठोल है ! .. १५. . तक कि तन्द्रा लगने का समय आ गया, प्राण शरीर से प्रयाण किया चाहते हैं पर रुपया जमा करने का ख्याल दूर न हुआ। उस समय भी राम-राम कहने के पलटे हाय रुपया हाय रुपया कह कर तन त्यागा। यह बैटा-बैठा उम कृष्ण की सब लीला देख-देख हेसा किया जिसके लिये गरीव कुटुम्बी जन्म भर तरमा किया। वह धन यहाँ दान-भोग के बिना व्यर्थ और निष्फल पड़ा है। क्या इसी को साव- धानी और न्याय कहेंगे ? __ मसल है, "जरा मारै रोव न दे। हाड वही मान वही चाम वही लहू वही। "तुम कत वाहन हम कत सूद हमरे लहू तो तुम्हरे दूध तब यह जित और जेता का भेद कैसा १ तुम्हे जेता किया हमें जित क्यों कर दिया ? हमने ऐसा क्या अपराध किया कि सैकड़ो वर्ष से भुगतमान भुगतते चले आते हैं और अब तो वह दशा श्रा लगी है कि जीवन मारू हो रहा है तब भी उस ठटोल के मन म जरा दया और इनसाफ जगह नहीं पाता। हमारे किसान मर-मर, पच-पच करोड़ों मन गेहूँ पैदा करें । वह यदि सब का सब हमारे काम में आवै तो चुकाये न चुकै पर गेहूँ खेत में रहता है तभी रेलीब्रदर के कारिन्दे गांव-गाँव घूम खेत का खेत चुकता कर लेते हैं हम मह तालते रह जाते हैं फसन पर भी बारह सेर तेरह सेर ने आगे नहीं पा सकते। मी को दया और इन्साफ कहेंगे ? काबुल की पहाडी धरती में नेवा पैदा कर देना श्रीर ब्रज की उर्वरा भूमि में कटेजी करील का जन्म । पढ़े-लिखे विद्वानों को निधनी मूर्ख, निवेवेकी को धनीपात्र, गुलाव के फूल्ल में पाटा-सुपात्र सुयोग्य को एक कुकाला भूतिन-साग सुन्दर स्वच्छ हिन्दी दो जलावतन-पोतिन को शकल जाल और फरेब ने भी उनी पश्चिमोत्तर की अदालत में स्थान दान- इत्यादि सब उसका ठठोलपन नहीं नो और क्या है ? जनवरी १३
पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/३१
दिखावट