पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/३२

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५-दिलबहलाव के जुदे-जुदे तरीके . जब आदमी को कुछ काम नहीं रहता तो दिल बहलाने को कोई- न कोई ऐसा एक काम निकाल लेता है, जिसमे समय उसको बोझ न मालूम हो और यह कहने को न रहे कि वक्त काटे नहीं कटता। इस दिलबहलाव के जुद्रे-जुदे तरीके हैं जिनमें थोड़े से यहाँ पर दिखाये जाते हैं-कितने सब काम-काज से छुटकारा पाय दिल वह- लाने को बाहर निकलते हैं । सदर बाजार के एक छोर से दूसरे तक दो-चार चक्कर कये कभी इस कोठे पर ताका कमी उस अटारी पर इशारेवाजी हुई दिल बहल गया, घर लौट आये। कितनों का दिल बहलाव हुक्केवाजी है. सब काम से फुरसत पाय किसी बैठक में श्रा बैठे हाहा-ठीटी करते जाते हैं, और चिलिम पर चिलिम उड़ाते जाते हैं-हाहा-ठीठी धौल-बक्कड़ का मौका न मिला तो वे-जड़-वे बुनि- याद जी उबियाऊ कोई दास्तान छेड़ बैठे घण्टो तक उसी में समय विताय घर की राह ली दिल बहल गया। कितने चले जाते हैं रास्ते में कोई दोस्त मिल गये दो-टो कच्ची-पक्की गौंडी-वौं ही इन्होंने उसे कह सुनाया उसने इन्हें कहा अपनी-अपनी राह ली सब थकावट दूर हो गई मन वहल गया। कर्कशा अपढ़ खियों का दिल-बहलाव लड़ाई है घर गृहस्थी के सब काम पिसौनी-कुटोनी से छुट्टी पाय जब तक दांत न किर लें और श्रापम में मोटी-मोटा न कर ले तब तक कभी न अधाय जी अवता रहे चित्र में उदासी छाये रहै मानो उम दिन उन्हें उपबाम हुशा-चुगल नवाई ईढी धृत्तों का दिल बहलाव निन्दा और चचान ई, दो-चार पुराने समय के खबीस इकठे हो तमाखू पिच्न.. पिच थक्ते जाते है और गौ वर्ष का पुराना गोई निकिर छेड़ बैठे