पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/३३

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१७ दिलवहलाव के जुद-जुदे तरीके बहुधा जान विरादरी के सम्बन्ध की कोई बात अवश्य होगी नाक चढ़ाय-चढाय में ह गार-बगार निसी मले मानुष के गुण मे दोष उद्- घाटन करते दो चार कच्ची पक्की कह सुन लिया मन वहल गया। कोई-कोई ऐसे मनहूस भी हैं कि फुरसत के वक्त किसी अँधेरी कोठरी मे हाथ पर हाथ रक्खे पहरों तक चुपचाप बैठे रहने से दिल बहलाव हो जाता है। बाज-वाज नौसिखिये नई रोशनी वाले जिनका किया धरा अाज तक कुछ नहीं हुश्रा मुल्क की तरक्की के स्तब्त में प्राय आज इस सभा में जाय हडाकू मचाया कल उस क्लब मे जा टाय-टीय कर आये दिल बहलाव हो गया। इन्हीं में कोई-कोई घाऊपप्प गुरूघंटाल किसी क्लव वा समाज के सेक्रेटगे या खजानची बन बैठे और सैकड़ों रुपया वसूल कर डकारने लगे। भांडों की नकल, सवारी की सवारी, जनाना साथ, आमदनी की प्रासदनी, दिल बहलाब मुफ्त में। सच पूछो तो इनका दिल बहलाव सब से अच्छा, हमे एसा दिल बहलाव मिलता तो सिवाय दिल बहलाने के कोई काम करने के डाँडे न जाते। धन्य हमारा समाज धन्य हमारे लोगों की तवियत की झुकावट जिनके बीच ऐसे-ऐसे उमदा मे उमदा दिल बहलाव मौजूद हैं। इसी दिल बहलाव का एक क्रम नीचे के श्लोक में भी दिया गया है- "काव्यशासविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् । व्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा" सच है विद्यारसिक पढ़े लिखे विद्वानों का क्रम अपढ़ साधारण लोगों से जैसा और सब बातों में निराला है वैसा ही दिलबहलाव भी मनोरोग का होना ही चाहिये । लामान्य मनुष्यों का दिल बहलान विषयवासना का एक ऋग रहता है, या विद्वानों का दिल बहलाव विद्या सम्बन्धा बुदिपा बढ़ानेवाला और शुद्ध सावर कम का होता है। इसी से उपर कहे श्लोक में लिखा गया है कि बुद्धिमानों का काल काव्यशाब के पढ़ने-पढ़ाने के प्रानन्द में बीतता है, भूखों का