पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/३४

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१८ . भट्ट-निबन्धावली । समय दुर्व्यसन और सोने में नष्ट होता है । अति दुरूह कठिन विषय जिनमें मस्तिष्क को विशेष परिश्रम पड़ता है चिरकाल तक उसमें अभ्यास के उपरान्त बहुधा जब तबियत उस ओर से उखड़ जाती है तब वैसे विषय जिनमे बुद्धि को अधिक परिश्रम नहीं है और सुकुमार, कोमल बुद्धि वालों के पढ़ने योग्य है जैसा काव्य नाटक उपन्यास नावेल्स किस्से कहानी इतिहास भूगोल इत्यादि के पढ़ने से देर तक दिमाग को काम में लाने से जी उस पर बोझ पा जाता है वह हल्का होकर 'दोचन्द उस दुरूह विषय की और धसता है। नैयायिक, वैयाकरण और गणितज्ञ "मेथिमेरिशियनी का दिल बहलाव गादाधरी जागदीशी और दीक्षित की फकिकात्रों के हल करने मे जैसा होता है वैसा किसी दूसरी बात से नहीं होता। कद्दावत चल पड़ी है.- वैयाकरण अर्द्धमात्रा के लाघव में पुत्र-जन्म के आनन्द का उत्सव मानते हैं। "म मात्रालाघवेन वैयाकरणाः पुत्रोत्सन मन्यन्त इसके यही प्रयोजन है कि जिस विपय का मनन करो वह मन में बैठ जाय तो मन प्रसन्न हो जाता है और इतनी सुशी होती है मानो लडका पैदा हुया। इसी तरद "युक्न दिस वीजगणित या कोई दूसरे हिसार के सवाल हल ही आने पर गणित , रने वाले के चित्त ने जो सुख होता है उसके, मागे विषयवासना के निकृष्ट कोटि वाले ' ग्रामोद-प्रमोद मिस कीकत में है। इसी तरह मभ्य समाज का भी दिलबहलाव इधर-उधर वे काम चूमने के बदले अपने समान उदार प्रहात वालों नाप ला जिनकी मापन की बात-चीत उत्तम उपदेश में पूर्ण स्नी है इनों ने किसी ने -- सवा सामिगनाप्यो यधप्युपहिन्ति नो । यावर स्वातंपामुपा मनिता मगुरुप यद्यपि का उपदेश में करें को भी उनके पास