पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/३५

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दिलवहलाव के जुदे-जुदे तरीके जाना उत्तम है जो आपस की उनकी बातचीत है वही उपदेश होती है। कृपणता की मूर्ति हमारे सेठ जी का दिलवहलाव रुपये की गजिया है, हुण्डी-पुर्जे के भुगतान मे छुट्टी पाय जब कुछ काम न रहा गजिया खोल बैठे, दो-चार हजार रुपया गिन डाला, दिल बहल गया। शराबी तथा जुवारी का दिल बहलाव शगल है । पक्के जुवारा को जिस दिन हजार पांच सौ जीत हार न हो ले जी अवता रहता है जिनके जीवन का सर्वस्व केवल धूत है। द्रव्यं लब्ध घूतेनैव दारा मित्र द्यूतेनैव । दत्तं भुक्त द्यूतेनैव सर्व नष्टं यूनेनैव ॥ जुवारी जुवा को बिना सिंहासन का राज्य मानता है- "न गणयति पराभवं कुतश्चित् हरति ददाति व नित्यमर्थजातम् । नृपतिरिव निकाममायदर्शी विभवक्ता समुपास्यते जनेन ॥" एसा हा शराशी जय तक पति-पीते वेहोश ही चहाच्चे मे न गिरे उसका दिल न बहलेगा। हमारा दिल बरसाव उमदे से उमदा टटका रमोला मजमून है, जिस दिन कोई नई बात तूझ गई दस मिनिट में अरे का खरी लिख डाला उस दिन चित्त बड़ा प्रसन्न रहा, नहीं बैठे- बैठे तिर पर हाथ रक्खे पारा सोचते रहते हैं 'ग्रन्त जो उद्विम खिन्न- चित निररत हा बैठा है। ऐसा ही अपने रसिक ग्राहकों को दो एक दिन ने किये दिल वालाय हम दाते हैं जिस दिन हम उनसे जा मिलने पना सुदिन मागते होंगे इत्यादि इत्यादि, दिलबहलाव के जुगु रोग, नहीं दिये गये। जनवरी १६