६-उपदेशों की अलग-अलग बानगी ___ जहाँ गृहस्थ के लिये सवेरे से उठ साँझ लौ अनेक अनेक चिन्ता' और भौझट दावनगीर रहती है और नोन तेल लकड़ी की फिकिर एक दम भी फुरसत नहीं लेने देती वहीं लोगों का तरह तरह का उपदेश भी जी को डांवाडोल किये रहता है, किसका किसका उपदेश सुने, किसे सच्चा मान, किसे झूठ । गुरू लोग उपदेश देते हैं बच्चा दुनिया के बखेड़ों में मत पडो विद्या बुद्धि दोनों सन्मार्ग की लुटेरी हैं, तुम अपने कोने में बैठ गोविन्द भजन किया करो, जो कुछ यमा लायो' स्त्री पुत्र चाहे मुँह ताकते रह जॉय मोटा झोटा खा-पी जो कुछ वचै वह ठाकुर जी को अर्पण कर दिया करो, सन्तों के सत्कार से जो वचै उसे गुरू महाराज की भेंट घर दिया करो। थोड़े से अंगरेजी पढ़े विधर्मी लोग उठ खड़े हुये हैं जिन्होंने अपना नाम संशोधक और रिफार्मर रख लिया है वे मौति-भौति की कमेटियां और सभायें कर तुम्हें उसमे बुलावेंगे और सब तरह पर तुम्हें बढ़ावा देंगे पर तुम चौकस रहना उनकी ओर न झुक पड़ना, नहीं तो बच्चा नरक की भाग में पड़े पड़े सड़ोगे कभी उद्धार न पावोगे। ___पादरी साहब बाजार में खड़े उपदेश देते हैं प्रभु ईमा की सरन गही वह तुम सबो के पाप को गटरी का हम्माल बन सूली पर चर गा, न कुछ दान का जाम, न नपत्या वो जलरन, न बड़े-बड़े नरम नियम से शरीर सुम्बाने की आवश्यकता है, उमदा में उमदा शगन पिया करो, देह को पागम और मुग्व पहुंचाने में ही में सासरन ने पाने र्फि मा पर मान का मुक्ति तुमारी दासी और करी होगी र श्रार ये क्या--- "भुक्तिश्च मूचिश्च । कास्य एक
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