उपदेशों की अलग-अलह वानगी अस्सी बरस की खोडही जप्पल बुढ़ियायें उपदेश देती हैं बेटा अब तुम सयाने भये घर दुबार की फिकिर रक्खा करो दुलहिनिया की नथिया टूट गै हे वतसिया का व्याह नियरान है सदा फक्कड़ बने, रहने से काम न सरिहै । कुपूत प्रावै तपत सपूत श्रावै नवत, भगवान् देखाई चार दिना मे तुम नातो पोता के होइ हौ झन-झन पट-पट करते घर मे पाँव न रक्खा करो, पानी भरी खाल कौन जानै आज का है कल का हो। ऐसी चाल चलो जेह में जग मे हंसी न हो। __घर वाली समझाती है हम सौ-मौ बार कहा सास ननद की बात हमसे सहा नहीं जातो, हमैं अलग लैके रहो, महीने में जितना कमाते हो भाई-बन्धन के खिलाने पिलाने में सब का सव उठ जाता है, उसी को जमा करते रहो तो गहनो से नख से सिख' तक हम लस जाय । अन्त में ये भाई-बन्ध तुम्हारे कोई काम न आवैगे पास पॅजी बनी रहेगी तो सब भाई भतीजे बनेंगे नहीं तो कौडी के तीन-तीन होंगे तुम जानते नहीं। न बाप न भैया सब से बडा रुपैया, सो रुपये को तुम ठिकरी कर रहे हो अभी तुम्हे समझ नहीं पड़ता पीछे पछताओगे। ____यार दोस्त उपदेश देते हैं वाहा हो दुनिया के सुख और आराम से मुंह मोड़ नरित्र शोधन के लिये जी दिये डालते हो जिममें , अपना बनै सो करो, जवानी का उमर खाने खेलने की होती हे तुम अभी ही से बुड्ढों की तरह बुजुरगी और बुर्दबारी का जामा अोढ़ बैठे सो क्यों १ घर में पडे-पडे सड़ा करते हो शाम को जरा बाजार की हवा खा आया करो, थाडी देर के लिये यार दोस्तों से भी मिल लिया करो, लो एक ग्लास छको तो सही यही सब तो जिन्दगी के मजे-- "आकवत की खुदा जाने अब तो आराम से गुजरती है।" "मा ले मधुसूदन कहो दा दामोदर नाम । राको राम प्रणाम कर भरदे मदिरा जाम"
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