७-विश्वास विश्वास के वृक्ष का अंकुर सरल और विमल चित्त के बाल- वाल में जमता है और धमांकुशरूप जल मे सिंच हरा-भरा और प्रफुल्लित हो इह लोक और परलोक सम्बन्धी मीठे और स्वादिष्ट फलों में लद संसार में मनुष्य के जीवन को सार्थक करता है। सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग ने वचने और जगत् के प्रबन्ध की उत्तमता के, लिये विश्वास एक मात्र सहारा है। अदृष्ट और पग्लोक में विश्वाम मे जो कुछ भन्नाई होती है उसकी व्यवस्था कौन जाने, विन देवी वात का ठोका कौन ले और जीन लोगों के साथ सिर पचावे। प्रायः दार्शनिक और कुती विश्वास की प्रणाली को एक, खेल-खेलौना गमझते हैं और विश्वास करनेवालों पर हमते हैं, पर निन सत्पुरुषो की अकुटिल सरल बुद्धि में पूर्वापर का विचार और स्वच्छ राति पर संसार-चक्र की धुरी के चलने का रवैया है वे विश्वास को तुच्चे कभी न समझेगे । चाहे दानिक होने के कारण विश्वास पर विशेष अदा न रखते हों, पर जगत् ने प्रबन्ध की दा के लिये वे यही कहेंगे कि जहाँ तक प्रना का विश्वास धर्मग्य और उपासना-काण्ड में हट रहे तहाँ तक छा। हजारों लाखो ऐमें मनुष्य है, जसपर हिन्दुलान में जो तथा विद्यासुग शून्य है, पर धर्म प्रार ईश्वर तथा परलोक मे विश्वास के कारण अनेक पापकर्म से बचते है और अशक दशा या अज्ञान अवस्था में किसी पापाचरग पर कैमा मुख पश्चाताप और अफसोचारते F खोलिये धर्मशास्त्रमणेता या नीतिप्रचनको ने विश्वास की
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