पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/४६

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८-तर्क और विश्वास तर्क और विश्वास दोनों संसार के चलाने की ऐसी अद्भुत शक्तियाँ हैं कि जिनके न रहने से मनुष्य के मनुष्यत्व में अन्तर पड़ ,, जाता है। जब तक आदमी का होश हवास दुरूस्त है तब तक तक और विश्वास दोनों भरपूर काम देते है। विक्षिप्त या पागल में ये दोनो रहते तो हैं परन्तु इनका प्रयोग यथावत् पागल मनुष्य नहीं । कर सकता। अब इन दोनों के यथावत् काम देने पर विचार होता है कि इन दोनों का आपस मे क्या सबन्ध है। कर्म-इन्द्रियाँ अर्थात् हाथ-पाव आदि के द्वारा इनके सम्बन्ध का ज्ञान किसी तरह हो ही नहीं सकता क्योंकि इनके सम्बन्ध का ज्ञानस्थल इन्द्रियो से कोई सरोकार नहीं रखता । श्रन्त्र रहीं शान-इन्द्रियाँ, उनमें तर्क बुद्धि का धर्म है और तके यहकार की विविध शक्रिया में एक शक्ति है । जव किसी स्थूल ना सूक्ष्म पदार्थ का ज्ञान-वन या ज्ञान इन्द्रियो न मन के द्वारा अहकार का होता है तब बुद्धि अपनी तकना-शक्ति निश्चय करती है कि या जान बलव में सत्य है गा भूट । सच-झूठ निश्चय के उपगन्त अहंकार उस पर विश्वास लाता है। इससे प्रगट हुना, तर्क और विश्वास में सेवक स्वामा का-सा मम्बन्ध है! ___ अय प्रश्न उट सकता कि जब दोनों में इस प्रकार का सम्बन्ध . तो ससार मनुष्यों को तक और विश्वास में क्यों तरह का अन्तमय है, उचित भाति सम्पूर्ण मनुष्यमान का एक सा विश्वास भाषा IT तुगम उनर यह है, जिसे हर या मनुष्य थाहा -