तर्क और विश्वास .. को देखे और तब उससे अपना अनुमान निकाले । ऐसा करने से जल्द प्रगट हो जायगा कि ससार के सब मनुष्य क्यों एक विश्वास के नहीं होते। ___ कारण इसका यह है कि सब लोग एक ही तरह का तर्क नहीं करते वल्कि लोगों के तर्क करने का प्रकार भिन्न-भिन्न है। एक प्रकार के तर्क करनेवाले वे हैं जो तक करने मे ऐसे आलसी होते हैं कि अपनी बुद्धि को थोड़ा भी परिश्रम नहीं दिया चाहते, अपने गुरु या बड़े लोगों के किये हुए तर्क पर जल्द विश्वास कर लेते हैं । ऐसे मनुष्यों को तर्क करने की शक्ति प्रतिदिन कुण्ठित होती जाती हैं। ऐसों का विश्वास वही रहेगा जैसा उनके बाप-दादों के समय मे चला , पाता है। बार-दादों का विश्वास चाहे कैसा ही पोच हो पर वे लकीर के फकीर बने ही रहेंगे। ऐसे लागों से यदि पूछा जाय कि तुम अपनी बुद्धि को क्यों नहीं काम में लाते तो ये पट से यही जवाब देंगे कि क्या हमारे बाप-दादे मूर्ख और नासमझ थे, क्या हम उनमे अधिक बुद्धिमान है। हिन्दुस्तान मे तो ऐसे लोगो को इतनी अधिकाई है गि १०० से ६० से कम न होंगे। किन्तु थोड़े या बहुत ऐने मनुष्य तो हर एक जाति और देश में पाये जाते हैं। इसलिये संसार में इतने तरह के अलग-अलग मत और एक मन मे अलग-अलग बहुत से जुडे-जुदे सम्प्रदाय हैं जिन्हे नदे-बड़े लोगों ने अपना मतलब गाँटने को अपने देश की मलाई ग उन्नति के लिये जुर-जुदे देशों में जुदे-जुदे समय में फैलाया और अब तक पेजाते जाते हैं । यद्यपि उनीहवीं शताब्दी क स प्राजादगी के जमाने में अँगरेती शिक्षा के प्रभार से अब उन भिन्न-भिन्न त, धर्म या सम्प्रदायों को कोई पावश्यकता नहीं है। दूसरे प्रकार के पुरुष वे ई जो अपने रोजमर्ग के काम में ऐसी तीखी बुद्धि रखते हैं और तर्क को एनना काम में लाते कि बात
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