३२ भट्ट-निवन्धावली कम लोग चालाकी, बुद्धिमानी और न्यायपूर्वक विचार मे उनकी , बराबरी कर सकते हैं, परन्तु जब किसी ऐसे विश्वास को तर्क के द्वारा शुद्ध करने की आवश्यकता पड़ती है, तर्क के बदले क्रोध करने लगते है, यहाँ तक कि न अपनी बात कहते हैं, न दूसरों को सुनते हैं, क्रोध । में इतना श्राग बबूला हो जाते हैं कि मानो उठाकर निगल गयगे और यही समझते हैं कि यह हमारा गुस्सा ही नर्क का पूरा काम देगा और हमारे विश्वास की पुष्टता हो गई। पर ऐसे काम के लिये बड़ा चालाक आदमी चाहिये और इस तरह के, चालाक बहुत कम , णये जाते हैं। ऐसे लोगों से समाज का काम तो भरपूर निकल सकता । है परन्तु सत्य का पोषण नहीं हो सकता, इसलिये कि उनका विश्वास भी गुस्से की रंगत पकड़ लेता है। एक प्रकार के पुरुष और भी हैं जो सच्ची नीयत से विश्वास के । पोषण में तत्पर हैं और सस्य के अन्वेपण में भी उद्यत हैं किन्तु बुद्धि , वैभव में इतने पूर्ण नहीं कि तर्क के द्वारा अपने विश्वास को सत्य के . पास तक पहुँचा सकें। तर्क तो करते हैं किन्तु उनका तर्क एकदेशीय होता है इसलिये सत्य का पूरा निश्चय नहीं कर सकते और विना पूरा निश्चय के जो विश्वास हो वह कच्चा विश्वास है इत्यादि । कई प्रकार के तर्क करनेवाले यहाँ दिखलाये गये । पर' सच तो यों है कि । विश्वास और तक दोनों एक दूसरे के दलना विरुद्ध है कि तक श्विास के लिये कुलादा है। विश्वास को जब तम चित्त में स्थान में योगे, तर्क की शृंखला - टूटे हीनी नहीं। जन RE -- - - -
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