जबान गई और उन्हे वृहत् होने के कारण स्मरण-शक्ति के बाहर समझ लोगो ने सकेत के ढङ्ग पर अक्षर निकाले और लिखकर रख छोड़ने लगे। , तात्पर्य यह कि यावत् विद्या और ज्ञान पहले जिला से कह कर प्रकट न किये गये होते तो केवल लेख-शक्ति से कुछ न होता, न इमारी सभ्यता इस छोर तक पहुँचती। जबान को दबाना क्रोध को दबा रखने का एक ही उपाय है। कई बार की आजमाई हुई बात है कि कैसा ही क्रोध आया हो चिल्लाने के एवज धीरे-धीरे बोलो, क्रोध क्रम-क्रम आप ही शान्त हो जायगा । जीभ समाज को कहाँ तक लाभ- दायक हुई सो दिखला चुके । अब धर्म-सम्बन्ध में जिह्वा पर लगाम रखने की ; कितनी आवश्य- कता है सो दिखलाते हैं। सच तो यों है कि.जीभ पर विना कोड़ा रक्खे धर्मिष्ठों को धर्मधुरन्धर बनने का दावा करना सर्वथा व्यर्थ है। वह अवश्य धोखे में पड़ा है जो अपने को धर्मिष्ट तो सानता, है पर, जीभ को अपने काबू मे नहीं किया । झूठ बोलना, झूठी गवाही देना, चुगली बदगोई इत्यादि से बचना ही जीभ पर लगाम नहीं कहलायेगा क्योंकि झूठी गवाही चुगली गाली इत्यादि बड़े-बड़े पापों का विषय
- निराला है। कानून फौजदारी "क्रिमिनल ला" की मद्द मे उसकी
गिनती है और सरकार की ओर से उसके लिये दण्ड नियत है । जिस पर जान-बूझकर शामत सवार होगी वही ऐसे-ऐसे अपराधों में अपने को फंसाय कैद और जुरमाने का सजावार बनावेगा। बल्कि जबान में लगाम से प्रयोजन गप्पी और वाचाल का है, जिसे अपनी गप्पाष्टक के समय आगे-पीछे का कुछ खयाल नहीं रहता, न अपनी या पराये की हानि-लाभ का। जिनको गप्प होकने की आदत हो गई है वे इसे अपने लिये दिल-बहलाव मानते हैं, इसमें किसी तरह ऐव या पाप नहीं समझते और जव उनके गप्प का विषय