लौ लगी रहे ! "अपसारव घनसारं कुरु हार दूर एव कि कसलैः । , अलमलसालिमृडालैरिति रुदति दिवानिश बाला ।" "तव विरहविधुरपाला खद्यः प्राणान् विमुक्तवती । दुर्लभसीहशमङ्गमत्वा न वे तामजहु ।” . सच है. वियोग लगन की ऐसी ही कसौटरी है। कोई किसी प्रेम- पात्री का सदेशा किसी से कहता है-तुम्हारे वियोग से विधुर फिर मिलने की आशा न समझ जल्द उसने प्राण लोड़ दिये।.किन्नु यह विचार कि ऐसे कोमल अङ्ग हमको अपने रहने के लिये कहाँ मिलेंगे, 'इसलिये प्राणों ने उसे न छोड़ा। एक दूसरा उदाहरण सच्ची लगन का यह भी है- "दर न मरन विधि विनय यह, भूत मि0 निज वाल।। प्रिय हित बापी मुकुर मग, बीजन अंगन - अकाल ।" जो कहीं परस्पर दोनो की लगन लग गई, तब तो एक मन दो तन, उसका कहना ही क्या, जैमा किसी शायर ने कहा है- "इसलिये तसवीर जाना मैने खिंचवाई नही, एक से जब दो हुये तो लुत्फ एकताई नहीं !" . इत्यादि शृंगार-रस-पूर्ण इसके अनेक उदाहरण हैं, सरस हृदय के लिये इतना दिग्दर्शन मात्र बहुत है। 'भक्त को अपने उपास्यदेव में लौ लगी तो वह अपने को सब भांति अशरण माने हुये केवल.उसी के स्मरण, कीर्तन, सेवन, पाद- वन्दन मे निरन्तर अनुरक्त होने के और कुछ जानता ही नहीं, वह संव ठोर वही अपने उपारय को व्याप्त मानता है। ऐसे तनमय लौलीन ' उदारचेना शुद्धचित्त सीधे जी को "तद्विष्णोः परमं पदम्" की प्राप्ति क्या दुर है । सर्वव्यापी परमात्मा जो घट-घट की जानता है उसे सीधा निष्कपट भोला-भाला समझ क्यों न अपनियावेगा। महात्मा ईसा का भी कथन है-"स्वर्ग का राज्य ऐसों का है जो इन बालकों
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