पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/७३

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लौ लगी रहे है और कुछ नहीं कर सकता। यदि दृढ़ और सच्ची लौ लगी है तो , इस डोर में गॉठ भी नहीं पड़ती क्योंकि गॉठ तो तभी पड़ सकती है जब लौ लगानेवाले को कही दूसरा सहारा हो; जब उसने अपने को अनन्यशरण और अगतिक मान लिया तब उसके लिये सिवाय उपास्य ‘देव के और कौन अगतिक का गति और शरण देने वाला हो सकता है-समस्त दृश्य जगत् चाहे अभी उच्छिन्न हो जाय या इस मर्त्यलोक 'के कीटानुकीट स्वर्गवासी अमरण देवताओं के ऊपर का दरजा प्राप्त कर ले उपासक के सरल कोमल मुग्ध मन मे इसका कुछ भी असर नहीं होता। इस बाह्य जगत् के बनने या बिगड़ने से उसे कोई सरोकार नहीं यदि उसके उपास्य प्रभु का उससे कोई लगाव नहीं। बड़े-बड़े चक्रवर्ती राज्यों का अधःपात तथा तुच्छातितुच्छ जन- समूहों का सासारिक वैभव के ऊँचे शिखर पर चढना, बड़े-बड़े राज- नीतिज्ञ जिसपर न जानिये क्या-क्या तूमार बांध खयाली पुलाव पकाया करते हैं; वे वे घटनायें जिनकी बुनियाद पर मुल्क या कौम का बनना- विगड़ना श्राटिकता है उनसे अपने प्रभु की सेवा-टहल में लौलीन उपासक को कोई प्रयोजन नहीं, जिनका नम्बर हमारे देश मे इतना अधिक है और मजहबी जोश इतना बढ़ा है कि इस तालीम के जमाने में कोशिश करने पर भी मुल्की जोश की ओर हमारी झुकावट होती ही नहीं। भक्ति-मार्ग जो अमृत-तुल्य है इस समय हमारे लिए जहर का प्याला हो रहा है । स्वर्ग की सीढी हाथ लगती है, एक ही उछाल मे इन्द्र के प्राधे श्रासन पर जा विराजोगे-इस अदृष्टवाद के वहाने इनसे जो चाहो सो करा लो, जो चाहो सो ले लो, कभी इनकार न करेंगे। कोई मुल्की मामिले जिसमे मजहब या परोक्ष का दखल न हो,' कभी उसमे ये प्रवृत्त न होंगे। अस्तु, लौ लगी रहे---उपकारी को परोपकार की लौ लगी है , खल को दूमरों की बुराई ढ़ने और पीड़ा पहुंचाने की लौ लगी है :