. . भट्ट-निबन्धावली पढ़ाने-लिखाने से फूलती-फलती नहीं। मकान तंग और वायु-संचार- ' -वंचित हो तो उसमें रहनेवाले सदा श्रासूदा और प्रसन्न रह फूलते- फलते हैं। ऐसी ही समझ ने प्लेग को देश मे टिक जाने के लिये सहायता दी है। गन्दे और तंग मकान में कबूतरों की ढाबली की भौति 'सिकुड-सिकुडाय के रहेंगे, पीले नाम से जद पड गये वला से, फूलते-फलते तो जायगे । किमसे कहें ? इन'गर्दखोरों के फूलने-फलने से क्या फायदा १. . __ मारवाड़ी और दिल्ली श्रागरा के खत्रियों के नाम में बहुधा मल लगा रहता है। जिनके नाम में मल है तो उनके काम में कहाँ तक मल न होगा ? सम्पूर्ण अभिधानावली, बड़ी-बड़ी लुगत और डिक्शे- नरियों को छान डालो, गटूमल मिठूमल कही न पायोगे । कोई-कोई जिनमें तरहदारी की बू श्रागई है, अपने लड़कों का नाम काफियारन्दी के साथ रखते हैं, जैसा छुन्नू, मुन्नू, साधो, माधो, सोहन,मोहन,रतन, जतन, सद्, मद्, सौंधू, भोंदू और लड़कियों का रम्मो, सम्मो, इन्नो मुन्नो,दुल्लो, मुल्जो इत्यादि । पुराने ढरें को छोड़ कोई बात निकालना हमने सीखा ही नहीं तब नामकरण में नया ढर्रा कहाँ से ला ? चरनदास रामदार, गनेसदास श्रादि बहुधा एक ही नाम के एक मुहल्ले में बीसों पाये जाते हैं। न जानिये क्यों हमको इन नामों पर ओकलाई श्राती है। उसमे भी कुछ फर्क नहीं, नीच जाति तेली-मजवा जो नाम रक्खेंगे वही ऊँच जाति वाले ब्राह्मण-क्षत्री भी। पुरुषों के नाम में महादेव, नारायण, राम, और स्त्रियों में गगा, यमुना, पार्वती, लछमी, तुलसा । । छोटे से छोटे शहर में एक-एक नाम के हजारों पाये जाते हैं। वही चंग- देशियों में स्त्रियों के नाम कैसे सरस और मनोज रक्खे जाते हैं, जैसा कामिनी, निस्तारिणी विश्व-विमोहनी, कादम्बिनी, महालिनी, सरोजनी कुमुदनी, नलिनी, क्षोगदवासिनी, सुफेशी, उर्वशी, स्वर्णमयी इत्यादि । हम लोगों में जुग्गो, पग्गो, भग्गो, बतस्तो इत्यादि । फिर गृहिस्पिन
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