. . . कर्णामृत तथा कर्णकटु ७३ सी एकबारगी लहलही हो उठी। कान के बहरे आँख के अन्धे टूटी खाट पर करवट भरते बुढ़ऊ जिन्दगी के दिन ठेल रहे हैं। किसो ने.. आके कहा, लाला तुम्हारे परपोता हुआ है। अमीरस-सा यह सुन्दर शब्द सुनते ही बुढ़ऊ उठ बैठे, मगन हो मन उनका मोर-सा नाचने लगा । योगियो की कठिन तपस्या-समान दिन-रात मेहनत कर इमतिहान दे आये है, पर एक परचा जरा बिगड़ गया है, हरदम जी खटके में रहता है। किसी दोस्त ने अाके कहा-हम देख आये हैं, पास हुओं की लिस्ट मे तुम्हारा नाम सब के सिरे पर है, सुनते ही इसके मन की कुम्हलानी कली खिल उठी। हजारों श्रादमी की भीड ठटाठट्ठ जमा है, लम्बे-चौड़े हाल मे कहीं तिल भर की जगह खाली नहीं है, सब लोग इसी इन्तजारी मे हैं कि वक्ता-वागीश कर अपनी मेघगंभीर या गिरा मे मधुर कोमल समुज्वल शब्दो से मोती की लरी सा पिरोयेंगे। लोगों की उत्कराठा जान वत्ता वागाश ने अपना व्याख्यान आरभ किया। चारों ओर चियर्स की मधुरं ध्वनि से 'हाल गूंज उठा। सुनने वालों के मन मे आनन्द की अमि उठने लगी, जैसा पूर्णचन्द्र का उदय देख समुद्र सब ओर से लहराने लगता है। वत्ता के एक-एक अक्षर मे शब्द-चातुरी तथा अर्थ-चातुरी का उद्गार जान सब लोग मोहित हो गये। अब कण-कटु को लीजिये। दो ककशा स्त्रियाँ लड रही हैं। दॉत किरते गाली देते दोनों आपस में ऐसा कोसती हैं जिसे सुन कलेजा फटा जाता है, यही जी चाहता है कि दोनों का सिर मुंडवाय मुह में कारिख पोत अडमन टापू का पाहुन उन्हे करा दे या चुडै लों के स्कूल मे तालीम के लिये उन्हे भरती करा दें। बड़े से कुनवे का एक-मात्र पोषक सपूत कुल की पताका किसी काम से कहीं दूर देश गया है । अचानक तार आया, वाबू को प्लेग हो गया । कर्ण-कटु यह बात सुनते ही घर के लोग घबड़ा गये, हाहाकार मच गया, किसी के '
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