के हितैषियों ने उससे अपना सम्बन्ध भंग कर लिया, अंतऐवं पत्रका सारा भार भट्ट जी पर आ पड़ा। पत्र बरावर चलता रहा और भट्ट जी के लेख 'हिन्दी-प्रदीप मे ही छपते थे। हिन्दी-प्रदीप मे उनके सैकड़ों-हजारों लेख छपे होंगे । संस्कृत के प्राचीन कवियों और ग्रन्थकारों के जीवन-चरित, श्री मद्भागवत, वाराही-संहिता, गीता और सप्तशती की आलोचनायें तथा षट्दर्शन- संग्रह का भाषानुवाद आदि सब लिख कर उन्होंने हिन्दी की अपूर्व सेवा की। कविता-सम्बन्धी अनोखी सूझ उपयुक्त क्रिया, उपयुक्त विशेषण, अनोखी उपमा, नई गढन्त कहावतों के नये अर्थ, संस्कृत की अनूठी उक्तियाँ, सस्कृत की लोकोक्तियाँ इत्यादि कितने ही अनुपम और उपयोगी विषय लिख-लिख कर उन्होंने 'हिन्दी प्रदीप में छापे । नाटक, उपन्यास, प्रहसन आदि की तो उसमें भरमार ही रहा करती। प्राचीन देश, नगर, नदी, पर्वतों आदि का खोज-पूर्ण अद्भुत वर्णन भी 'हिन्दी-प्रदीप में किया गया। नृपति-चरितावली' नामक लेख-माला में इस देश की छोटी- बडी सभी रियासतों का हाल भी पूर्णतः छपा । हॅसी-दिल्गो, चोज की वाते भी उसमें न जाने कितनी छपती रहीं। मतलब यह कि- हिन्दी-प्रदीप अपने समय का एक श्रेष्ठ उपयोगी मासिक पत्र था। इस पत्र के अधिकाश लेख स्वय भट्ट जी के लिखे हुए होते थे। परन्तु उन्हें उस समय के अन्यान्य लब्ध-प्रतिष्ठ लेखकों का भी सहयोग प्राप्त था, जिनमे से कुछ के नाम ये हैं-पं० राधाचरण गोस्वामी, पं० श्रीधर पाठक, प. महावीरप्रमाद द्विवेदी, श्री राधामोहन गोकुल जी, बाबू सूर्यकुमार वर्मा, ५० मधुमगल मिश्र, पं० हरिमंगल मिश्र, पं० द्वारिकाप्रसाद चतुर्वेदी, बाबू पुरुपोत्तमदास टण्डन, पं० लक्ष्मीधर वाजपेयी, बाबू जगमोहन वर्मा, श्री गणपति जानकीराम दुबे, 40 अनन्तराम पाण्डे, कविवर माधव शुक्ल इत्यादि ।
पृष्ठ:भट्ट-निबन्धावली.djvu/९
दिखावट