- प्रकृति के अनुसार जीवन-मरण -७७ ', प्राकृतिक नियम विरोध जिस मृत्यु का कारण हो उसी फ़ो अप्राकृतिक मृत्यु वा अकाल मृत्यु कहना चाहिये। इस प्रकार की 1. मृत्यु में प्राणी सम्बन्धी प्राकृतिक नियमों की विजातीय विरुद्ध नियमों
- से'लडाई ठाननी पड़ती है, जिसका परिणाम (कमी शीघ्र कभी विलम्ब
- - से) भौतिक शरीर का समाप्त होना है। रोगजनित मृत्यु इस हेतु से 'अकाल-मृत्यु है। यह बात याद रखने लायक है कि पृथ्वी की आकर्षण-शक्ति , जन्म से ही प्राणी पर अपना बल करती है, परन्तु किसी शक्ति-विशेष • से प्राणी इस आकर्षण को आक्रमण कर लेता है । यदि प्राणी मे ऐसी शक्ति न हो तो उसका शरीर कदापि न बढ़ सके और न चल फिर सके और पृथ्वी उसे जड़ पदार्थ की भांति अपनी पीठ पर अवश्य
- पटक ले, परन्तु प्राणी इस अद्भुत शक्ति के बल से आकर्षण को
' 'परास्त करता हुआ बढ़ता चला जाता है । मनुष्य की वद्धन-शक्ति की - परमावधि ३० वर्ष तक मानी गयी है, इसके अनन्तर शारीरिक, वृद्धि रुक जाती है और स्थिरता आती है । इस बल-वीर्य-संयुक्त स्थिर दशा . में मानुषिक देह फिर लगभग ३० बरस तक बना रहता है । परन्तु इस .३० बरस के उपरान्त अर्थात् जन्म से लगभग ६० वर्ष के अनन्तर वह शक्ति जिसने शरीर को पृथ्वी की आकर्षण-शक्ति से बचाया था, मन्द होने लगती है और नित्य-नित्य ऐसी घटती है कि अनुमानत: ३० ही बरस में मनुष्य के देह को जड़ पदार्थ की तरह पृथ्वी की पीठ पर पटक अाप अवसान को प्राप्त हो जाती है। परन्तु कैसे पटकती है ? पटकने में दुःख देती है, कष्ट भुगतवाती है १ नहीं कदापि नहीं; वरन् धीरे-धीरे (इतना धीरे कि मनुष्य को बिलकुल नहीं मालूम पड़ता) . • शरीर का सञ्चित भौतिक शक्तियों को घटाती और हटाती जाती है। 'और शरीर बिना अनुभव किये उनका त्याग करता जाता है जैसे । निद्रा के आगमन समय में वेमालूम सुखपूर्वक बेसुधी धीरे-धीरे छाती