भट्ट-निवन्धावली नई जवानी फलवन्त उर्वरा पृथ्वी का एक बाग है, जिसमें मेवे के उमदा पेड़ न लगाए जाये तो लम्बी-लम्बी घास आपसे आप उग श्राती है। - इसी से चतुर सयाने बागवान की तरह अच्छे मां-बाप अपनी सन्तान की पूरी फिकिर करते हैं। सदुपदेश सद्गुण अनेक विद्या, शिल्प और कला को वृक्ष की भांति उनमें श्रारोपण करने की सदा चेष्टा किया करते हैं। बाप-मां का उद्यम सफल हुअा और लड़का उनका इस चढ़ती उमर में भलाई और अच्छे ढङ्ग की ओर झुक पड़ा तो जीवन पर्यन्त भली ही बात करता जाता है। अनेक विद्या का उपार्जन कर वंश का भूषण हो जन्म भर अपने जन्म-दाता को सुख देता रहता है। बुराई और कुटन की ओर झुक पड़ा तो कुल का दूपण हो यावजीवन वह अपने मां-बाप को डहता है। इस चढ़ती उमर में जब मनुष्य की यावत् वस्तु का उपचय होता जाता है, एक विवेक या विचार अलबत्ता पास नहीं फटकने पाता। सच कहो तो विचार को अवकाश उमर के धंसने ही पर मिलता है । गदहपचीसी प्रसिद्ध है। शादी का भी कौल है- . चेहल साल उमरे अज़ीज़त गुज़स्त । मिज़ाजे तो अज़ हाल तिफली न गश्त ॥ इससे सिद्ध हुआ कि परिपक्व बुद्धि या विचार-शक्ति मनुष्य में ' तव तक नहीं आती, जब तक इसकी चढ़ती जवानी का समय नहीं बीतं गया। यही एक ऐसा भारी दोप है, जिससे नौजवानों में बहुत ने उत्तमोत्तम गुण, उत्साह, अध्यवसाय, दृढ़ता, स्थिरता, माइस, हिम्मत आदि के रहते भी वे क्षिप्रारी, अविचारी और अविवेकी चाहलाते हैं। सव भाति निपांगुर अपाहिज धूढ़ी डाइीवाले उन्हें छोकड़े, बालिश तिपन और मूर्ख समम अपने मुकाबिले उनका कुछ मी गौरव नहीं करते, चाहे वे कैसे ही विद्वान हो गये हो। तोनिश्चय
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