पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१२७

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बातचीत १२७ स्पीच का उद्देश्य अपने सुनने वालों के मन में जोश और उत्साह पैदा कर देना है। घरेलू बातचीत मन रमाने का एक ढंग है इसमे स्पीच की वह सब संजीदगी बेकदर हो धक्के खाती फिरती है। जहाँ आदमी को अपनी ज़िन्दगी मजेदार बनाने के लिये खाने पीने चलने फिरने आदि की ज़रूरत है वहाँ बातचीत की भी हम को अत्यन्त आवश्यकता है । जो कुछ मवाद या धुओं जमा रहता है वह सब बात- चीत के ज़रिये भाफ बन बाहर निकल पड़ता है चित्त हल्का और स्वच्छ हो परम आनन्द मे मग्न हो जाता है। बातचीत का भी एक खास तरह का मज़ा होता है। जिनको बात करने की लत पड़ जाती है वे इसके पीछे खाना पीना तक छोड़ देते हैं अपना बड़ा हर्ज कर देना उन्हें पसन्द आता है पर बातचीत का मज़ा नही खोया चाहते। राबिनसन- क्रूसो का किस्सा बहुधा लोगों ने पढा होगा जिसे सोलह वर्ष तक मनुष्य का मुख देखने को भी नहीं मिला । कुत्ता बिल्ली आदि जानवरों के बीच रहा किया; सालह वर्ष के उपरान्त जब उसने फ्राइडे के मुख से एक बात सुनी यद्यपि इसने अपनी जगली बोली मे कहा था उस समय, राबिनसन को ऐसा आनन्द हुआ मानो इसने नये सिरे से फिर से आदमी का चोला पाया। इससे सिद्ध होता है मनुष्य की वाशक्ति मे कहाँ तक लुभा लेने की ताकत है । जिनसे केवल पत्र व्यवहार है कभी एक बार भी साक्षात् कार नहीं हुआ उन्हे अपने प्रेमी से कितनी लालसा बात करने की रहती है। अपना आभ्यन्तरिक भाव दूसरे को प्रकट करना और उसका प्राशय आप ग्रहण कर लेना केवल शब्दों ही के द्वारा हो सकता है । सच है :- "तामर्द सखुन गुफ्ता बाशद । ऐबो हुनरश निहफ्ता बाशह" "तावच शोभते मूखों यावकिचिन्न भाषते" बेन जानसन का यह कहना कि-"बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है। बहुत ही उचित बोध होता है।