१३० भट्ट निबन्धावली अन्त में खोढ़े दाँत निकाल निकाल लड़ने लगेगी। लड़कों की बातचीत मे खेलाड़ी हुये तो अपनी अपनी आवारगी की तारीफ़ करने के बाद कोई ऐसी सलाह गाठेगे जिसमें उनको अपनी शैतानी ज़ाहिर करने का पूरा मौका मिले। स्कूल के लड़कों की बातचीत का उद्देश्य अपने उस्ताद की शिकायत या तारीफ या अपने सहपाठियों में किसी के गुन- ऐगुन का कथोपकथन होता है। पढ़ने में तेज़ हुआ तो कभी अपने मुकाबिले दूसरे को फौकीयत न देगा सुस्त और बोदा हुआ तो दवी बिल्ली सी स्कूल भर को अपना गुरू ही मानेगा। अलावे इसके बातचीत की और बहुत सी किसमे हैं राजकाज की बात, व्यौपार सम्बन्धी बात- चीत, दो मित्रों में प्रेमालाप इत्यादि । हमारे देश मे नीच जाति के लोगों मे बात-कही होती है लड़की लड़के वाले की ओर से । एक एक आदमी विचवई होकर दोनों के विवाह सम्बन्ध की कुछ बातचीत करते हैं उस दिन से बिरादरी वालों को जाहिर कर दिया जाता है कि अमुक की लड़की से अमुक के लड़के के साथ विवाह पक्का हो गया और यह रसम बड़े उत्साह के साथ की जाती। एक चंडूखाने की बातचीत होती है इत्यादि, इस बात करने के अनेक प्रकार और ढंग हैं। यूरोप के लोगों मे बात करने का एक हुनर है "पार्ट ऑफ कनवरसेशन" यहाँ तक बढा है कि स्पीच और लेख दोनों इसे नहीं पाते। इसकी पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वन्मण्डली में है। ऐसे ऐसे चतुराई के प्रसंग छेड़े जाते हैं कि जिन्हें सुन कान को अद्भुत सुख मिलता है सहृदय गोष्ठी इसी का नाम है । सहृदय गोष्ठी के बातचीत की यही तारीफ है कि बात करने वालों की लियाकत अथवा पाण्डित्य का अभिमान या कपट कहीं एक बात में न प्रगट हो वरन् जितने क्रम रसाभास पैदा करने वाले सवों को घरकाते हुये चतुर सयाने अपनी बातचीत का उपक्रम रखते हैं जो हमारे आधुनिक शुष्क पण्डितों की बातचीत में जिसे शास्त्रार्थ कहते हैं कमी श्रावे ही गा नहीं। मुर्ग और बटेर की लड़ाइयों की झपटा-झपटी के समान जिनकी नीरस काव काव
पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१२८
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