बातचीत मे सरस सलाप का तो चर्चा ही चलाना व्यर्थ है वरन् कपट और एक दूसरे को अपने पाण्डित्य के प्रकाश से बाद मे परास्त करने का संघर्ष आदि रसाभास की मामग्री वहाँ बहुतायत के साथ श्राप को मिलेगी। घण्टेभर तक कॉव-काव करते रहेगे तय कुछ न होगा। बड़ी बड़ी कम्पनी और कारखाने आदि बड़े से बड़े काम इसी तरह पहले दो चार दिली दोस्तों की बातचीत ही से शुरू किये गये उपरान्त बढते बढ़ते यहां तक बढे कि हजारों मनुष्यों की उससे जीविका और लाखों की साल में आमदनी उसमें है। पचीस वर्ष के ऊपर वालों की बातचीत अवश्य ही कुछ न कुछ सार गभित होगी। अनुभव और दूरन्देशी से खाली न होगी और पच्चीस से नीचे वालों की बातचीत मे यद्यपि अनुभव दूर दर्शिता और गौरव नहीं पाया जाता पर इसमे एक प्रकार का ऐसा दिल बहलाव और ताज़गी रहती है कि जिसकी मिठास उससे दसगुना अधिक चढी बढी है। यहाँ तक हमने बाहरी बातचीत का हाल लिखा जिसमे दूसरे फरीक के होने की बहुत ही आवश्यकता है। बिना किसी दूसरे मनुष्य के हुए जो किसी तरह सम्भव नहीं है और जो दो ही तरह पर हो सकती है या तो कोई हमारे यहाँ कृपा करे या हमी जाकर दूसरे को सर्फराज़ करे। पर यह सब तो दुनियादारी है जिसमे कभी कभी रसाभास होते देर नहीं लगती क्योंकि जो महाशय अपने यहाँ पधारे उनकी पूरी दिलजोई न हो सकी तो शिष्टाचार मे त्रुटि हुई । अगर हमी उनके यहाँ गये तो पहले तो बिना बोलाये जाना ही अनादर का मूल है और जाने पर अपने मन माफिक वर्ताव न किया गया तो मानो एक दूसरे प्रकार का नया घाव हुआ इस लिये सब ते उत्तम प्रकार बातचीत करने का हम यही सम- झते हैं कि हम वह शक्ति अपने मे पैदा कर सके कि अपने आप वात कर लिया करें। हमारी भीतरी मनोवृत्ति जो प्रतिक्षण नये नये रग दिखलाया करती है और जो वाह्य प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा भारी -आईना है जिसमें जैसी चाहो वैसी सूरत देख लेना कुछ दुर्घट बात
पृष्ठ:भट्ट निबंधावली भाग 2.djvu/१३१
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